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संवेग: May 2011
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! शुक्रवार, 13 मई 2011. एक प्रेम का दरिया बहता है! न जाने कब से! उसे रोकने के सारे प्रयास. आखिर में विफल रहे! जैसे एक छोटी-सी झनकार. न जाने इतने कठोर बंद कमरे में. कहाँ से चली आई! लाख़ बहाने बनाए,. पर तार तो छू गया था. अब भला कहाँ संभलता! दरिया से मिला और. और दरिया हुआ! ये कैसी अजीब दीवानगी है? शायद इस दुनिया को इसकी. ज्यादा ज़रूरत हैं! प्रस्तुतकर्ता. 8 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! लेबल: कविता. केदा...प्र...
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संवेग: कुछ मुक्तक
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! गुरुवार, 3 नवंबर 2011. कुछ मुक्तक. जिंदगी में आना. दो वक्त का ख़ाना. फिर सब भूलाना. वापस चले जाना।. तेलंगाना का होना. ये है कैसा रोना. राजनीति का खिलौना. जनता का कभी न होना।. दर्द का आना. जैसे हो फसाना. कभी इधर आना. कभी उधर जाना. और कभी न हो ठिकाना! आँखों का मोल बड़ा. जो न कहा वह गढ़ा. न कहकर कुछ मढ़ा. जिसे ले तू अढ़ा! पानी न होता. तो फिर कैसा गोता! कपड़े कैसे धोता. इंसान कैसे होता! फूल का खिलना. कली का टूटना. किसका-किससे? एक टिप्पण&#...पुर...
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संवेग: रिश्ते
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! शनिवार, 4 मई 2013. रिश्ते. फिर द्वन्द्व में झुझलाया मन! रिश्ते समर्पण चाहते है. मैं कब पीछे थी इसमें. पर द्वन्द्व किस बात का. असल में रिश्ता होते ही कुछ. बँधने-सा लगता. रिश्ते भी सीमा में जकड़ने लगते. ऐसे में जो पूरे डूबते. या फिर स्तह पर ही रहते . उनका क्या. उन्हें मिलती - असुरक्षा और. और निराह द्वन्द्व! तो अब समझ आया. सभी कुछ नहीं निभ सकता. ईमानदारी से! कुछ न कुछ छूट ही जाता है. हर रिश्ते को. पर कैसे. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कविता. I am an observer.
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संवेग: दलदल
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! शनिवार, 4 मई 2013. समतल नदी में दलदल. शायद आप भी अचंभित हो जाएँ. पर ऐसा सच में है. ये दलदल आपको लिल लेगा. इसकी ख़बर भी न होगी! जितना आप दूर भागों. ये और भी करीब-गहराता आएँ! ये बड़ी आत्मियता से शिकार बनाता. और शिकार कर फिर यथास्थित. कोई शक भी न कर पाएँगा. इतना बुद्धिमानी! शायद हम इस कला में निपुण नहीं. इसलिए तो इसकी आलोचना. नहीं नहीं आम आदमी नहीं बोल सकता. अपनी पीड़ा का दर्द नहीं खोल सकता! भला सुनेगा कौन. बहुमत किसका. गुंगे. I am an observer.
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संवेग: November 2012
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! शुक्रवार, 16 नवंबर 2012. मनोग्रंथी. एक समय था जब धन्नालाल अपनी संतानों से बड़ी आशाएँ रखता था, उनमें भी ख़ास कर बड़ी बेटी से उसे बड़ी उम्मीद थी! जहाँ देखों दरारें ही दरारें. प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! नई पोस्ट. I am an observer. आæ...
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सागरिका: February 2014
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सागरिका. खुली डायरी के बिखरे पन्नों को सहेजने की कोशिश. बुधवार, 5 फ़रवरी 2014. शर्म करो, मुख्यमंत्री. तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव. अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा. राज्यों के विभाजन के लिए. संविधान राजी है. राज्यों के विभाजन के लिए. रीति-नीति कायम है. राज्यों के विभाजन के लिए. जनमत का समर्थन है. राज्यों के विभाजन के लिए. पूरी तैयारी है. राज्यों के विभाजन के लिए. प्रजाशक्ति का रास्ता है. राज्यों के विभाजन के लिए. पार्लियामेंट का समर्थन है. स्वीकृति है. स्वीकृति है. स्वीकृति है. बहुत लगाव है. प्रधì...
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संवेग: March 2011
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! गुरुवार, 17 मार्च 2011. लघु कथा की विस्तृत मीमांसा. लघुकथा वर्तमान में एक सशक्त साहित्य-विधा के रूप में स्थापति है! पुस्तक - हिंदी लघुकथा. लेखिका-डॉ.शकुन्तला 'किरण'. प्रकाशक-संकेत प्रकाशन. समीक्षा - डॉ. बलविंदर कौर. प्राध्यापक,दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा. खैरताबाद, हैदराबाद-500004. प्रस्तुतकर्ता. 3 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. धारवाड में. दीप-प्रजî...दूर...
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संवेग: गर्भ में वह-1
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! गुरुवार, 3 नवंबर 2011. गर्भ में वह-1. न जाने कौन है वह! न मुझे उसकी पहचान! बातें करते डरती हूँ. पता नहीं क्या माँग ले? कैसे रहता होगा-वह? असल बरदाश्त का पुतला है! कभी इस बात को सोच सहम जाती हूँ! कितना अपना-सा लगते हुए. एक ही पल में पराया लगे! मैंने कोई सपना नहीं संजोया! उसके आने के लिए! शायद ये ज़ायदती है! ये जानकर भी अंजान होना होगा! क्योंकि वह बहुत बड़ा रहस्य है! मेरे गर्भ में जो पल रहा है! प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. धूप न...
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संवेग: परिवार
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! शुक्रवार, 16 नवंबर 2012. और क्या पढ़-लिखकर भी व्यक्ति के संस्कार नहीं बदलते? प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. कोई टिप्पणी नहीं:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). मेरे बारे में. I am an observer. मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. पुस्तक समीक्षा. मेरी ब्लॉग सूची. अर्पणा दीप्ति. चीन यात्रा - १०. धूप ने कव&#...भार...
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संवेग: गर्भ में आना-2
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मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में! गुरुवार, 3 नवंबर 2011. गर्भ में आना-2. जिसका चुपके से इंतज़ार,. उसी के आने से बेख़बर. जब उसका आना, जाना! तो अपने को पहचाना! पर मेरी ख़ुशी किसका अफ़साना? क्योंकि मुझे तो अपने को बिसराना! फिर मेरी ख़ुशी का क्या? बात सुन सहम गई! फिर ज़िद में आगे हुई! बहुत से सवाल-ज़वाब के साथ! पर डर हर पल बढ़ता गया! कि जिसने अपने को न जाना. दूसरे को पहचान देगा-क्या? इसी द्वन्द्व में खड़ी हूँ! फिर भी डर-डर लड़ी हूँ! प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. और, यह कठिन तप. 8216;...
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