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खाकी में इंसान: March 2011
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खाकी में इंसान. पुलिस की वर्दी में होते हुए भी. इंसान बने रहना. इतना मुश्किल तो नहीं. इन्सानियत की सेवा करने वाले खाकी पहने पुलिस कर्मियों को जिनके साथ कार्य कर मैं इस पुस्तक को लिख पाया और. माँ को, जिन्होंने मुझे जिन्दगी की शुरुआत से ही असहाय लोगों की सहायता करने की सीख दी. शुक्रवार, 4 मार्च 2011. हम नहीं सुधरेंगे. आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों की. आत्मा जैसे मर गई है. रह गई है सिर्फ राख बाकी।. इन मरी हुई आत्माओं वाली. आधुनिकता के नाम पर. चलती-फिरती मशीनों को. नितान्त अकेला! अशोक कुमार. 12-एच,शा...
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खाकी में इंसान: November 2010
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खाकी में इंसान. पुलिस की वर्दी में होते हुए भी. इंसान बने रहना. इतना मुश्किल तो नहीं. इन्सानियत की सेवा करने वाले खाकी पहने पुलिस कर्मियों को जिनके साथ कार्य कर मैं इस पुस्तक को लिख पाया और. माँ को, जिन्होंने मुझे जिन्दगी की शुरुआत से ही असहाय लोगों की सहायता करने की सीख दी. मंगलवार, 16 नवंबर 2010. सच्चाई से कितना अलग है पुलिस के प्रति आम दृष्टिकोण…? पुलिस: मिथक और यथार्थ. दरवाजे पर खड़ा संतरी. सर्दी-गर्मी और बरसात. सब भुलाकर . खड़ा रहता है दिन भर बन्दूक ताने. साहब लोग समझ पाते. और देखते . पुलि...एक उल...
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खाकी में इंसान: September 2010
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खाकी में इंसान. पुलिस की वर्दी में होते हुए भी. इंसान बने रहना. इतना मुश्किल तो नहीं. इन्सानियत की सेवा करने वाले खाकी पहने पुलिस कर्मियों को जिनके साथ कार्य कर मैं इस पुस्तक को लिख पाया और. माँ को, जिन्होंने मुझे जिन्दगी की शुरुआत से ही असहाय लोगों की सहायता करने की सीख दी. बुधवार, 29 सितंबर 2010. जेलर जेल में- वृद्ध के साहस ने दिखाया रंग. जेलर जेल में. भौतिकता. अवसरवादिता. मूल्यहीनता. सबके बोझ तले मरती हुई मानवता-. कोई नई बात नहीं है।. युगों-युगों. यही है कि. अशोक कुमार). अशोक कुमार. पाहोम ...परन्...
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खाकी में इंसान: January 2010
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खाकी में इंसान. पुलिस की वर्दी में होते हुए भी. इंसान बने रहना. इतना मुश्किल तो नहीं. इन्सानियत की सेवा करने वाले खाकी पहने पुलिस कर्मियों को जिनके साथ कार्य कर मैं इस पुस्तक को लिख पाया और. माँ को, जिन्होंने मुझे जिन्दगी की शुरुआत से ही असहाय लोगों की सहायता करने की सीख दी. शनिवार, 30 जनवरी 2010. मैने आई.पी.एस. क्यों चुना…! उनका ये कहना, ‘जनता की सेवा करो'. सिर आँखों पर. और अच्छा है! बहुत अच्छा है. और भी अच्छा है! गरीब जनता से जब खुद जुड़ोगे'. साहब हैं हम! अशोक कुमार). अशोक कुमार. बाएं स&...वोट...
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खाकी में इंसान: July 2013
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खाकी में इंसान. पुलिस की वर्दी में होते हुए भी. इंसान बने रहना. इतना मुश्किल तो नहीं. इन्सानियत की सेवा करने वाले खाकी पहने पुलिस कर्मियों को जिनके साथ कार्य कर मैं इस पुस्तक को लिख पाया और. माँ को, जिन्होंने मुझे जिन्दगी की शुरुआत से ही असहाय लोगों की सहायता करने की सीख दी. शुक्रवार, 26 जुलाई 2013. खाकी में इंसान – पुस्तक समीक्षा(श्रीमती चित्रा मुदगल द्वारा). व्यवस्था. प्राचीनकाल. राजव्यवस्था. लेखकों. हैं।. श्रृंखला. महत्वपूर्ण. हालांकि. आतंकवादियों. ज्यादा. अंधेरे. किनारे. मैनें. क्यों. संस्...
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खाकी में इंसान: December 2009
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खाकी में इंसान. पुलिस की वर्दी में होते हुए भी. इंसान बने रहना. इतना मुश्किल तो नहीं. इन्सानियत की सेवा करने वाले खाकी पहने पुलिस कर्मियों को जिनके साथ कार्य कर मैं इस पुस्तक को लिख पाया और. माँ को, जिन्होंने मुझे जिन्दगी की शुरुआत से ही असहाय लोगों की सहायता करने की सीख दी. सोमवार, 28 दिसंबर 2009. इन्सान बने रहना … इतना मुश्किल तो नहीं? एक बँधी हुई लीक. और सामन्ती मर्यादा के गोल-गोल दायरे…. इन्हीं पर चलते हैं लोग. चलने की सीख देते हैं लोग! किन्तु…. मेरा कहना है-. अशोक कुमार). अशोक कुमार. शिका...
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खाकी में इंसान: खाकी में इंसान – पुस्तक समीक्षा(श्रीमती चित्रा मुदगल द्वारा)
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खाकी में इंसान. पुलिस की वर्दी में होते हुए भी. इंसान बने रहना. इतना मुश्किल तो नहीं. इन्सानियत की सेवा करने वाले खाकी पहने पुलिस कर्मियों को जिनके साथ कार्य कर मैं इस पुस्तक को लिख पाया और. माँ को, जिन्होंने मुझे जिन्दगी की शुरुआत से ही असहाय लोगों की सहायता करने की सीख दी. शुक्रवार, 26 जुलाई 2013. खाकी में इंसान – पुस्तक समीक्षा(श्रीमती चित्रा मुदगल द्वारा). व्यवस्था. प्राचीनकाल. राजव्यवस्था. लेखकों. हैं।. श्रृंखला. महत्वपूर्ण. हालांकि. आतंकवादियों. ज्यादा. अंधेरे. किनारे. मैनें. क्यों. संस्...
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