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मस्तराम की आवारा डायरी: मार्च 2008
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. रविवार, 30 मार्च 2008. फूलों की खुशबू से नहीं महकता चमन-हिंदी शायरी. खिलौने से बच्चे अब कहाँ खेलते. दिन रात घर में अपने बडों को. इंसानों से जो खेलते देखते. बड़े भी क्या सिखाएं छोटों को. अपने बडों से ही सीखे क्या. बस जिन्दगी एक नौकरी या व्यापार. जिसमें समेटो दौलत और शौहरत अपार. जमाने के बिगड़ जाने की शिकायत में. करते हैं अपना वक्त बरबाद लोग. आदमी के मन में बसी है. नहीं चाहता अमन. 1 टिप्पणी:. लेबल: मस्ती. सजते है...लोग...
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मस्तराम की आवारा डायरी: जुलाई 2007
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. गुरुवार, 26 जुलाई 2007. प्रात:काल की बेला. प्रात:काल की बेला. वर्षा के मौसम में. रिमझिम होती फुहार. शीतल पवन का स्पर्श. एक ऐसे आनन्द की. अनुभूति का आनद कराता है. जी शब्दों में व्यक्त करना. सहज नहीं कोई पाता है. न गद्य और पद्य में. न गीत से न संगीत से. न श्रवण न न अध्ययन. यह एक अनुभूति है जिसे. वह कर पाते हैं. जो समय पर जाग जाते हैं. देर से जागने पर. संसार स्वत: ही नरक सा लगता है. भोर का हर एक -एक पल. हिंदी. पिछलí...
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मस्तराम की आवारा डायरी: छिः भतीजी के मौसी-मौसाजी क्रिकेट देखते हैं-हास्य व्यंग्य
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. शनिवार, 7 जून 2008. छिः भतीजी के मौसी-मौसाजी क्रिकेट देखते हैं-हास्य व्यंग्य. इससे पहले मैं कुछ कहता भतीजा बोला-‘इधर हाल में हमारे मौसा और मौसी सो रहे हैं। उनकी नींद टूट जायेगी।’. भतीजी बोली-‘‘क्या आप आराम नहीं करोगे।’’. मैने कहा-‘नहीं ट्रेन में सोता हुआ आया हूं।’’. मैने कहा-‘पंद्रह मिनट पहले।’. भतीजी ने मुझे पूछा-‘‘इसका क्या मतलब? भतीजी बोली-‘हमारी मौसी और मौस...जब उठें तो पूछ लेना क...भतीजा बोला...मैं...भती...
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मस्तराम की आवारा डायरी: जून 2007
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. मंगलवार, 19 जून 2007. जो आज़ाद रहे हैं गुलामी का मतलब नहीं जानते. उनका लोकतंत्र तो. परलोक में बसता है. यहां बात करते हैं आजादी की. पर दिल उनका डंडा बजने वाले. देशों में ही रमता है. बच्चे पैदा करने से लेकर. अपने मरने तक के मामले में. सरकार अपना फंदे कसे रहती है. लोगों के सांस लेने पर भी. जो हिसाब मांगती है. उस देश को मानते हैं आदर्श. यहां आजादी नहीं मांगते. उसकी सीमाओं को तोड़कर. बताते हैं कि. लेबल: आजादी. तो गरी...
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मस्तराम की आवारा डायरी: ख्वाहिशों में अपना दिल न लगाओ-हिंदी शायरी
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. रविवार, 13 अप्रैल 2008. ख्वाहिशों में अपना दिल न लगाओ-हिंदी शायरी. आदमी की ख्वाहिशें. उसे जंग के मैदान पर ले जातीं हैं. कभी दौलत के लिए. कभी शौहरत के लिए. कभी औरत के लिए. मरने-मारने पर आमादा आदमी. अपने साथ लेकर निकलता है हथियार. तो अक्ल भी साथ छोड़ जाती है. ख्वाहिशों के मकड़जाल में. ऐसा फंसा रहता आदमी जिंदगी भर. लोहे-लंगर की चीजों का होता गुलाम. जब छोड़ जाती है रूह यह शरीर. लेबल: अभिव्यक्ति. शेर-ओ-शायरी. कहीं ज...अगर हम ओल...
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मस्तराम की आवारा डायरी: खुशी हो या गम-हिंदी शायरी
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. शनिवार, 5 जुलाई 2008. खुशी हो या गम-हिंदी शायरी. अपनी धुन में चला जा रहा था. अपने ही सुर में गा रहा था. उसने कहा. 8216;तुम बहुत अच्छा गाते हो. शायद जिंदगी में बहुत दर्द. सहते जाते हो. पर यह पुराने फिल्मी गाने. मत गाया करो. क्योंकि इससे तुम्हारे दर्द पर. किसी को रोना नहीं आयेगा. क्यों नहीं नये गाने गाते. शोर सुनकर लोगों के. हृदय में भावनाओं का ज्वार आयेगा. समझ में कुछ नहीं आयेगा. लेबल: शेर. शेर-ओ-शायरी. अगर हम ओलंप...
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मस्तराम की आवारा डायरी: फ़रवरी 2008
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008. अपना बजट तो होता है कड़वे सत्य पर आधारित-हिंदी शायरी. घर का बजट में ही. इतना उलझ जाते हैं. किसी और के बजट पर. सोच ही कहाँ पाते हैं. दाल, गेहूँ ,चावल, नमक और शक्कर. इनके इर्द-गिर्द ही चलता है अपना चक्कर. रेल में तो कभी कभार जाते हैं. घर के खेल में उलझे होते हैं ऐसे कि. देश के अर्थ के बजट से कभी अपने अर्थ. अपना बजट तो होता है. कड़वा सत्य पा आधारित. आंकडों से सजे बजट. साहित्य. इस जीवन पथ पर. जि...
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मस्तराम की आवारा डायरी: दुनियादारी इसी का नाम है-हिंदी शायरी
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. शनिवार, 12 अप्रैल 2008. दुनियादारी इसी का नाम है-हिंदी शायरी. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं. उनके जख्म पर लगाओं मरहम. वह फिर भी दिल में बदनीयती और. बुरे इरादे लिये होते हैं. लेते हैं अच्छा नाम. केवल लोगों को दिखाने के लिये. दिल में जमाने को लूटने के. उनके अरमान होते हैं. शरीर का इलाज तो किया जा सकता. पर उनको दवा देना है बेकार. जिनके दिल में खोटी नीयत और. शादी से पहले. इश्क हो जाता है हवा. लेबल: शेर. शेर-ओ-शायरी. कहीं...अगर हम ओल...
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मस्तराम की आवारा डायरी: अपना दर्द पी जाएं तो अच्छा है-हिंदी शायरी
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मस्तराम की आवारा डायरी. प्रेम में नाकाम, लिखने में बदनाम और बडबोले शख्स की कलम से. बुधवार, 2 अप्रैल 2008. अपना दर्द पी जाएं तो अच्छा है-हिंदी शायरी. जब भी तलाश की किसी साथी की. जो दिल को तसल्ली दे. कोई ऐसा मिला नहीं. जिसको दिया अपना हाल. दिखाने को हमदर्द बनता. फिर जाकर चटखारे लेकर भीड़ में सुनाता. महफिलों में वाह-वाही लूटता कहीं. हमारा दर्द तो हल्का नहीं हुआ. जमाने में बदनाम हो गये हर कहीं. किसी को अपना दर्द सुनाने से. दिल में ही रखें तो अच्छा है. लेबल: शायरी. साहित्य शेर. नई पोस्ट. अगर हम ओलंप...