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' सर्जना ': December 2012
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. माँ, याद तुम्हारी आती है।. Posted by दीपक । Deepak. On सोमवार, 17 दिसंबर 2012. इस कमरे का एकाकीपन. तन्हा है ये मेरा मन. इस अंधियारे में तेरी याद. यादों के दीप जलाती है,. माँ, याद तुम्हारी आती है।. पास के छत पर माँ कोई. गोद के मुन्ने में खोई,. कोमल थपकी दे-देकर. जब लोरी कोई सुनाती है,. माँ, याद तुम्हारी आती है।. जब गर्म तवा छू जाता है. हाथ मेरा जल जाता है. या तेज धार की छूरी से. ऊंगली ही कट जाते है,. Links to this post. Essay on 'Cow...
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' सर्जना ': कुछ ऐसा हुआ होगा
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. कुछ ऐसा हुआ होगा. Posted by rajesh ranjan. On गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011. जब उसने जाना कि. झाड़ियों के पीछे. अपनी-अपनी हड्डी चबाते. गोल-गोल घूम. अपनी पूँछ का पीछा करना ही ज़िन्दगी है. मेरी, तुम्हारी नजर में तब. एक दुःख उसे साल गया. दुःख कुछ ऐसा. जिसका साझा बनाना आसान नहीं होता. क्योंकि एक सिरफिरे को समझने के लिए समझ का न होना जरुरी है. कुछ ऐसा दुःख. जो जीने को लेकर है. जो हर उस चीज़ से है. सपने . . . और ऐसे में. नई पोस्ट. कवित...
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' सर्जना ': October 2009
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. मेरा मैं. Posted by दीपक । Deepak. On शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009. मेरा मैं. है कहीं भीतर. खूब भीतर’. और परतें चढी जा रही हैं. चढ़ती जा रही हैं. दो बूँद खामोशी. सहेज रखी है मैंने. किसी बेशकीमती विरासत की तरह. जब आँखों को मूँदकर. छूता हूँ अपनी खामोशियों को. तो लगता है. कुछ मिल गया है खोया-सा. और परतों के भीतर. खूब भीतर. कुछ कहता है कुछ सुनता है. कहीं ज़िन्दा है. कहीं ज़िन्दा है. मेरा "मैं"।. राहुल कुमार. Links to this post.
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' सर्जना ': June 2009
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. Posted by दीपक । Deepak. On शुक्रवार, 19 जून 2009. राजन प्रकाश. सर्जना २४वें अंक से). Links to this post. Labels: लघुकथा. तेरी आँखों की तरह. Posted by दीपक । Deepak. On सोमवार, 15 जून 2009. बात उन दिनों की है. जब सड़क बन रही थी. कच्चे काले कोलतार की,. और तुमने कहा था -. देख बिल्कुल काली हैं न. तेरी आँखों की तरह।. कोलतार से उठ रहे धुएँ. के बीच. एक दार्शनिक की तरह . कहा था मैंने -. उस सुदूर देहात तक,. Links to this post. जिस...
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' सर्जना ': मेरा मैं
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. मेरा मैं. Posted by दीपक । Deepak. On शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009. मेरा मैं. है कहीं भीतर. खूब भीतर’. और परतें चढी जा रही हैं. चढ़ती जा रही हैं. दो बूँद खामोशी. सहेज रखी है मैंने. किसी बेशकीमती विरासत की तरह. जब आँखों को मूँदकर. छूता हूँ अपनी खामोशियों को. तो लगता है. कुछ मिल गया है खोया-सा. और परतों के भीतर. खूब भीतर. कुछ कहता है कुछ सुनता है. कहीं ज़िन्दा है. कहीं ज़िन्दा है. मेरा "मैं"।. राहुल कुमार. Labels: कविता.
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' सर्जना ': बोलते अक्षर
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. बोलते अक्षर. Posted by दीपक । Deepak. On शुक्रवार, 10 जुलाई 2009. जो क्षय नहीं होते. मानव की भांति. नहीं रोते. हो जाते हैं हृदय पर. पुकारते. हैं अपनी आवाज़ से. हाँ, अक्षर भी बोलते हैं. तुमने सुनी नहीं अब तक. शायद तुम पढ़ते-लिखते. रहे हो अक्षरों को,. जानते नहीं सच. बोलने वाले अक्षर. नए नहीं हैं. सदियों से वे सुना रहे हैं. दास्तान अपनी. शब्दों से भी बड़े हैं,. ये अक्षर जो जोड़ते हैं. कभी-कभी ज़िन्दगी. गाथाओं. को बुन. Essay on 'Cow' by...
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' सर्जना ': माँ, याद तुम्हारी आती है।
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. माँ, याद तुम्हारी आती है।. Posted by दीपक । Deepak. On सोमवार, 17 दिसंबर 2012. इस कमरे का एकाकीपन. तन्हा है ये मेरा मन. इस अंधियारे में तेरी याद. यादों के दीप जलाती है,. माँ, याद तुम्हारी आती है।. पास के छत पर माँ कोई. गोद के मुन्ने में खोई,. कोमल थपकी दे-देकर. जब लोरी कोई सुनाती है,. माँ, याद तुम्हारी आती है।. जब गर्म तवा छू जाता है. हाथ मेरा जल जाता है. या तेज धार की छूरी से. ऊंगली ही कट जाते है,. नई पोस्ट. श्रेणी. सदस्य...
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' सर्जना ': May 2009
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. Posted by rajesh ranjan. On बुधवार, 6 मई 2009. उस नुक्कड़ पर मुड़ते ही. कदम जैसे ठहर से गए . क्यों? कोई खास! वो कौन थी? नन्ही से बच्ची! दो छोटी-सी चोटियाँ. मुंह में एक आइसक्रीम,. किनारों से टपकती मलाई,. जिंदगी जैसे, सिमट सी गई हो. उस एक आइसक्रीम में. और यादों के झरोखों में से. एक कली खिलखिला उठी. तुतलाती आवाज़ में पूछा था उसने. नन्ही-सी ऊँगली हवा में उठा के,. पु भाई' देख.'जआज';. माँ बोली -. आया भाई? Links to this post.
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' सर्जना ': July 2009
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सर्जना '. भारत की 'भारती' को समर्पित. अलख : विसंवाद - अष्टम की स्मारिका. बोलते अक्षर. Posted by दीपक । Deepak. On शुक्रवार, 10 जुलाई 2009. जो क्षय नहीं होते. मानव की भांति. नहीं रोते. हो जाते हैं हृदय पर. पुकारते. हैं अपनी आवाज़ से. हाँ, अक्षर भी बोलते हैं. तुमने सुनी नहीं अब तक. शायद तुम पढ़ते-लिखते. रहे हो अक्षरों को,. जानते नहीं सच. बोलने वाले अक्षर. नए नहीं हैं. सदियों से वे सुना रहे हैं. दास्तान अपनी. शब्दों से भी बड़े हैं,. ये अक्षर जो जोड़ते हैं. कभी-कभी ज़िन्दगी. गाथाओं. को बुन. Links to this post.