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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: कुछ तो करना है ....
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . कुछ तो करना है . ये माना कि मेरी. एक आवाज़ के उठ जाने से. कुछ नहीं होगा. लेकिन ये भी तय है . मेरे इस वक्त चुप रह जाने से. आने वाली पीढियों तक. कुछ नहीं होगा ।. अन्ना हजारे के समर्थन में. अनूप भार्गव. Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार. 164;¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤. आदरणीया अनूप भार्गव जी. सादर नमस्कार! आज है आपका जन्मदिवस…. जन्मदिवस के शुभ अवसर पर आपको बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं! राजेन्द्र स्वर्णकार. 4:51 am, September 09, 2011. अनूप जी,. सशक्त रहा ! Aap ki dosti...
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: मुक्तक
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . मीठी यादों की एक निशानी देखूँ. जज़्बों में पहचान पुरानी देखूँ. मैं जिसमे किरदार हुआ करता था. तेरे चेहरे पे वो कहानी देखूँ ।. अनूप भार्गव. लेकिन ओह! तेरे चेहरे पर वो कहानी देखूँ. किरदार गये वक्तों में .था तो मैं ही. पर , अलास (अंग्रेज़ी वाला ) हीरो था कोई और. और मैं सिर्फ. कॉमेडी रोल की चार लाईना ही .). अब जूते चप्पल मत मारियेगा :-). 2:49 am, June 16, 2008. नीरज गोस्वामी. अनूप जी. 3:43 am, June 16, 2008. 4:38 am, June 16, 2008. बहुत उम्दा. 9:49 am, June 16, 2008. Dr Chandra Kumar Jain.
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: तुम जब से रूठी हो
http://anoopbhargava.blogspot.com/2006/11/blog-post.html
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . तुम जब से रूठी हो. तुम जब से रूठी हो. मेरे गीत अपना अर्थ खो बैठे हैं. मेरे ही गीत मुझ से ही खफ़ा हो. मुझ से दूर जा बैठे हैं. माना कि तुम मुझ से नाराज़ हो. लेकिन मेरे गीतों से तो नहीं. क्या तुम उनको भी मनानें नही आओगी? मेरे गीत फ़िर से नया अर्थ पानें को बेताब हो रहे हैं ।. अनूप भार्गव. Labels: कविता. संजय बेंगाणी. 1:29 am, November 20, 2006. 2:10 pm, November 20, 2006. अनूप भार्गव. संजय भाई:. 3:02 pm, November 20, 2006. भुवनेश शर्मा. शुक्रिया. 3:37 pm, November 20, 2006. कह देन&...
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: तुम
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . तुम कई बार. चुपचाप,. मेरे ज़हन में. आ कर बैठ जाती हो. कि मुझे. अपनी तनहाई. का भरम होने लगता है ,. और मैं. फ़िर से. तुम्हारे बारे में. सोचने लग जाता हूँ ।. अनूप भार्गव. Tum har bar.achchi kavita hai. 12:19 pm, July 24, 2013. सुनील गज्जाणी. AAP KE BLOG PAR AANNA ACHCHA LAGA /. 3:44 am, April 26, 2014. Start self publishing with leading digital publishing company and start selling more copies. Publish ebook with ISBN, Print on Demand. 1:51 am, October 14, 2015. तनहाई का भरम.
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: कभी लिखा था ...
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . कभी लिखा था . जज़्बातों की उठती आँधी. हम किसको दोषी ठहराते. लम्हे भर का कर्ज़ लिया था. सदियां बीत गई लौटाते ।. वो लड़ना झगड़ना रूठना और मनाना. किस्से सभी ये पुराने हुए हैं. वो कतरा के छुपने लगे हैं हमीं से. महबूब मेरे सयाने हुए हैं ।. अनूप भार्गव. अनूप शुक्ल. ईद के चांद होली में दिखे। सही है दिखे तो सही।. 10:40 pm, March 21, 2008. कंचन सिंह चौहान. 4:43 am, March 22, 2008. 6:36 am, March 22, 2008. सुनीता शानू. 11:24 pm, March 22, 2008. 3:24 am, March 23, 2008. अनूप भाई,. अनूप ज&#...
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: मुक्तक
http://anoopbhargava.blogspot.com/2007/04/blog-post.html
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . वो लाज को आँखों में छुपाये तो छुपाये कैसे. वो मुझ से दूर भी अगर जाये तो जाये कैसे. वो मेरी रूह की हर रग रग में शामिल है. वो मुझ से बदन को चुराये तो चुराये कैसे? अनूप भार्गव. Labels: मुक्तक. अनूप शुक्ला. बढ़िया है! बहुत दिन बाद बुनाई-कताई हुयी ख्वाब की! 1:35 pm, April 06, 2007. राकेश खंडेलवाल. लाज आती तो मेरी बाँह में आते वो नहीं. दूर रहना था अगर पास में आते वो नही. रूह की प्यास का होता न ख्याल उनको अगर. खूबसूरत मुक्तक है आपका. 2:43 pm, April 06, 2007. 4:26 pm, April 06, 2007.
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: दूसरी हत्या
http://anoopbhargava.blogspot.com/2007/01/blog-post_30.html
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . दूसरी हत्या. बापु ,. देखो आज हम. तुम्हारी समाधि धोने आये हैं,. ये बात अलग है कि साथ में. लाठी, पत्थर और आँसू गैस के खिलौने लाये हैं,. लेकिन सच सच बतायें बापु,. ये समाधि को धोना वोना. तो बेकार की बात है ,. अरे हम तो इस युग के नाथू राम गोड़से हैं. जो अपना अपना अधूरा काम करनें आये हैं. शरीर से तो तुम्हे कब का मार चुके. आज तुम्हारी आत्मा तमाम करने आये हैं ।. अनूप भार्गव. Labels: कविता. बहुत सुन्दर कविता।. 2:08 am, January 30, 2007. संजय बेंगाणी said. 3:34 am, January 30, 2007. इसी...
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: दो मुक्तक
http://anoopbhargava.blogspot.com/2006/12/blog-post_23.html
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . दो मुक्तक. तुम को देखा तो चेहरे पे नूर आ गया. हौले हौले ज़रा सा सुरूर आ गया. तुम जो बाँहों में आईं लजाते हुए. हम को खुद पे ज़रा सा गुरूर आ गया. ज़िन्दगी गुनगुनाई , कहो क्या करें? चाँदनी मुस्कुराई, कहो क्या करें? मुद्दतों की तपस्या है पूरी हुई. आप बाँहों में आईं, कहो क्या करें? अनूप भार्गव. Labels: मुक्तक. चाँद को देखकर मौज़ें उठी. चाँदनी भी उतर लहरों पर चली. चाँद समन्दर की बाहों में. आगोश की चाह में आरज़ू जली. 1:29 am, December 24, 2006. बहुत बढिया. 3:02 am, December 24, 2006.
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: कौन कहता है
http://anoopbhargava.blogspot.com/2007/04/blog-post_14.html
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . कौन कहता है. कौन कहता है. भाग्य की रेखाएं. बदल नहीं सकती? मुझे याद है. जब तुमने पहली बार. अपनी कोमल उँगलियों से. मेरी हथेली को कुरेदा था ,. कौन कहता है. भाग्य की रेखाएं. बदल नहीं सकती? अनूप भार्गव. सुंदर रचना, बधाई अनूप भाई! 3:43 pm, April 14, 2007. बहुत सुंदर! 1:00 am, April 15, 2007. अनूप भाई,. स स्नेह,लावण्या. 3:24 am, April 15, 2007. बहुत सुन्दर! घुघूती बासूती. 4:09 pm, April 15, 2007. पूनम मिश्रा. नए साल में. एक लकीर नई. हाथ तुम्हारा. 1:04 am, April 16, 2007. एक कशिश स&...