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रूप-अरूप

रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Friday, August 14, 2015. तृप्‍ति‍ है बादलों से. तुम जानते हो. यूं बीच रास्‍ते छोड़. आगे बढ़ जाओगे. आंखों में सावन भरकर. मैं प्‍यासी धरती सी. वहीं पड़ी रहूंगी, बूंदों के इंतजार में. सूखती है अवनि‍, फटता है उसका सीना. तृप्‍ति‍ मि‍लती है उन्‍हीं बादलों से. जो बार-बार रूठकर, तरसाकर. चले जाते हैं. बहुत इंतजार के बाद, फि‍र लौटने को. रश्मि शर्मा. Friday, July 31, 2015. एक वक्‍त था. जब तुम्‍हें सुना. कुछ और नहीं सुना. खुद को. Thursday, July 30, 2015.

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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Friday, August 14, 2015. तृप्‍ति‍ है बादलों से. तुम जानते हो. यूं बीच रास्‍ते छोड़. आगे बढ़ जाओगे. आंखों में सावन भरकर. मैं प्‍यासी धरती सी. वहीं पड़ी रहूंगी, बूंदों के इंतजार में. सूखती है अवनि‍, फटता है उसका सीना. तृप्‍ति‍ मि‍लती है उन्‍हीं बादलों से. जो बार-बार रूठकर, तरसाकर. चले जाते हैं. बहुत इंतजार के बाद, फि‍र लौटने को. रश्मि शर्मा. Friday, July 31, 2015. एक वक्‍त था. जब तुम्‍हें सुना. कुछ और नहीं सुना. खुद को. Thursday, July 30, 2015.
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रूप-अरूप | rooparoop.blogspot.com Reviews

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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Friday, August 14, 2015. तृप्‍ति‍ है बादलों से. तुम जानते हो. यूं बीच रास्‍ते छोड़. आगे बढ़ जाओगे. आंखों में सावन भरकर. मैं प्‍यासी धरती सी. वहीं पड़ी रहूंगी, बूंदों के इंतजार में. सूखती है अवनि‍, फटता है उसका सीना. तृप्‍ति‍ मि‍लती है उन्‍हीं बादलों से. जो बार-बार रूठकर, तरसाकर. चले जाते हैं. बहुत इंतजार के बाद, फि‍र लौटने को. रश्मि शर्मा. Friday, July 31, 2015. एक वक्‍त था. जब तुम्‍हें सुना. कुछ और नहीं सुना. खुद को. Thursday, July 30, 2015.

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रूप-अरूप: सोचने को बुलाती नदी...'' नदी को सोचने दो''

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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Friday, July 10, 2015. सोचने को बुलाती नदी.' नदी को सोचने दो'. आप भी एक नजर डालें. सोचने को बुलाती नदी. अनुराग अन्वेषी. कविता संग्रह : नदी को सोचने दो. कवयित्री : रश्मि शर्मा. प्रकाशक : बोधि प्रकाशन. मूल्य : 120 रुपये. पर आखिर यह मध्यवर्गीय स्त्री चाहती क्या है? चाय की तलब/चलो/आज तुम ही बना लो/एक प्‍याली चाय/मैं तुम्‍हारी. रश्मि शर्मा. Saturday, July 11, 2015 2:07:00 PM. अनुराग अन्‍वेषी जी द्व&...Saturday, July 11, 2015 2:07:00 PM. सुन...

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रूप-अरूप: पास-पास ही रहूंगी....

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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Saturday, July 4, 2015. पास-पास ही रहूंगी. न सींचो. शब्‍द-जल से. कि एक दि‍न. पल्‍लवि‍त-पुष्‍पि‍त हो. घना तरूवर बनूंगी. है चाहत. तो धर लो. मुट्ठि‍यों में. बन कपूर की. पहचानी सुगंध. कहीं पास-पास ही रहूंगी. रश्मि शर्मा. बहुत सुन्दर. Saturday, July 04, 2015 2:59:00 PM. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक. चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।. हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।. डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक. Saturday, July 04, 2015 6:03:00 PM. रचना पसंद आई।. रात ग&#2369...

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रूप-अरूप: प्रेम और चांद

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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Tuesday, November 15, 2011. प्रेम और चांद. मेरी गलि‍यों में. चांदनी का डेरा था. दूधि‍या रौशनी ने. अपना शबाब बि‍खेरा था. रात का था. तीसरा पहर. जब हुई थी दस्‍तक. मेरे दरवाजे पर. अधमुंदी आंखों से. देखा मैंने. धीमी-धीमी थपकि‍यों को. पहचाना मैंने. नहीं.वो झोंका नहीं था. मस्‍त बयारों का. ना ही. कोई भ्रम. वो तुम थे. जो चांद से. पूछ रहे थे. मेरा पता. जब देखा. चांद के बहाने तुमने. मेरे छत पर. महमहा उठा. और मैं. फास्‍ले को. कौशल किशोर. अभिष&#237...

4

रूप-अरूप: कोई छीलता जाता है.....

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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Thursday, July 2, 2015. कोई छीलता जाता है. मन पेंसि‍ल सा है. इन दि‍नों. छीलता जाता है कोई. बेरहमी से. उतरती हैं. आत्‍मा की परतें. मैं तीखी, गहरी लकीर. खींचना चाहती हूं. उसके भी वजूद में. इस कोशि‍श में. टूटती जाती हूं. छि‍लती जाती हूं. जानती हूं अब. वो दि‍न दूर नहीं. जब मि‍ट जाएगा. मेरा ही अस्‍ति‍त्‍व. उसे अंगीकार. कि‍या था. तो तज दि‍या था स्‍व. उसके बदन पर. पड़ने वाली हर खरोंच. मन के इस मि‍लन में. उसने पहले सौंपा. सु-मन (Suman Kapoor). म&#23...

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रूप-अरूप: तृप्‍ति‍ है बादलों से

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रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं. Friday, August 14, 2015. तृप्‍ति‍ है बादलों से. तुम जानते हो. यूं बीच रास्‍ते छोड़. आगे बढ़ जाओगे. आंखों में सावन भरकर. मैं प्‍यासी धरती सी. वहीं पड़ी रहूंगी, बूंदों के इंतजार में. सूखती है अवनि‍, फटता है उसका सीना. तृप्‍ति‍ मि‍लती है उन्‍हीं बादलों से. जो बार-बार रूठकर, तरसाकर. चले जाते हैं. बहुत इंतजार के बाद, फि‍र लौटने को. रश्मि शर्मा. बेहतरीन अभिव्यक्ति. Friday, August 14, 2015 5:20:00 PM. Subscribe to: Post Comments (Atom). मुरझ&...

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शेष है अवशेष: शैलप्रिया की निगाह में स्त्री संघर्ष

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शेष है अवशेष. शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script). शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।. Tuesday, May 12, 2009. शैलप्रिया की निगाह में स्त्री संघर्ष. य वर्मा. अनुराग अन्वेषी. उसे पुरुषों जैसा अधिकार क्यों नहीं मिल पाया है? वह बार-बार अपनी लड़ाई हार क्यों जाती है? मॉडरेटर : अनुराग अन्वेषी. लेबल यादें. लेखिका. शैलप्रिया. स्मृति. May 13, 2009 at 9:48 PM. May 13, 2009 at 9:50 PM. ऊब और दूब. ग&#23...

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शेष है अवशेष: सार्थक एक लम्हा

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शेष है अवशेष. शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script). शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।. Sunday, March 29, 2009. सार्थक एक लम्हा. जीना बहुत कठिन है।. लड़ना भी मुश्किल अपने-आप से।. इच्छाएं छलनी हो जाती हैं. और तनाव के ताबूत में बंद।. वैसे,. इस पसरते शहर में. कैक्टस के ढेर सारे पौधे. उग आए हैं. जंगल-झाड़ की तरह।. इन वक्रताओं से घिरी मैं. उग जाता है. शैलप्रिया. लेबल कविता. ऊब और दूब. जो अन...

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शेष है अवशेष: मेरे आस-पास बहती है एक सुलगती नदी

http://shailpriya.blogspot.com/2009/09/blog-post.html

शेष है अवशेष. शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script). शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।. Tuesday, September 01, 2009. मेरे आस-पास बहती है एक सुलगती नदी. लेखक परिचय. सुलगती हुई नदी पर अभी इतना ही। शेष फिर . मॉडरेटर : अनुराग अन्वेषी. लेबल यादें. लेखिका. शैलप्रिया. स्मृति. September 2, 2009 at 7:37 AM. बेहतरीन आलेख! December 2, 2009 at 6:26 AM. March 19, 2011 at 11:29 AM. ऊब और दूब. चोख&#2...

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शेष है अवशेष: एक सुलगती नदी

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शेष है अवशेष. शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script). शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।. Sunday, April 19, 2009. एक सुलगती नदी. मैं नहीं जानती,. बह गई एक नदी. सुलगती नदी. गर्म रेत अब भी. आंखों के सामने है. इनमें इंद्रधनुष का. कोई रंग नहीं. मेरे अंदर एक नदी. इंद्रधनुष. ताड़ के झाड़ में. उलझ कर रह गया. मेरा मैं उद्विग्न हो कर. दिनचर्या में खो गया. एक सुलगती नदी बह गई. 11 फरवरी'95,. एक और अनम&#2...

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शेष है अवशेष: April 2009

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शेष है अवशेष: जिंदगी

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शेष है अवशेष. शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script). शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।. Tuesday, July 07, 2009. जिंदगी. अनुराग अन्वेषी. अखबारों. की दुनिया में. महंगी साड़ियों के सस्ते इश्तहार हैं।. शो-केसों में मिठाइयों और चूड़ियों की भरमार है।. प्रभू, तुम्हारी महिमा अपरम्पार है. कि घरेलू बजट को बुखार है।. तीज और करमा. अग्रिम और कर्ज. एक फर्ज।. इनका समीकरण. शैलप्रिया. July 7, 2009 at 9:52 PM.

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शेष है अवशेष: May 2009

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शेष है अवशेष: January 2009

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शेष है अवशेष. शेष है अवशेष' आपकी लिपि में (SHESH HAI AVSHESH in your script). शेष है अवशेष' पर कमेंट करने के लिए यहां रोमन में लिखें अपनी बात। स्पेसबार दबाते ही वह देवनागरी लिपि में तब्दील होती दिखेगी।. Saturday, January 31, 2009. भइया की परेशानियों को बांटने वाला आया. अनुराग अन्वेषी. मॉडरेटर : अनुराग अन्वेषी. 1 प्रतिक्रियाएं. लेबल यादें. लेखिका. शैलप्रिया. स्मृति. Wednesday, January 28, 2009. अनुराग अन्वेषी. मॉडरेटर : अनुराग अन्वेषी. 1 प्रतिक्रियाएं. लेबल यादें. लेखिका. शैलप्रिया. और इतना बत&#2366...

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