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मुक्ताकाश....: July 2013
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मुक्ताकाश. बुधवार, 10 जुलाई 2013. कैसे इंसान हो गए हैं हम. अब अपने आप से परेशान हो गए हैं हम,. आदमी थे अब तलक, शैतान हो गए हैं हम! उन्हें जम्हूरियत ने सिखा दी ये अदा भी-. दीदें फाड़कर बताते हैं, महान हो गए हैं हम! ख़ुशी हो, गम हो या खौफनाक मंज़र हो,. सुर्खियाँ बटोरने को हैवान हो गए हैं हम! सियासत उनके पांवों की हाँ, बन है बेड़ी,. कभी बा-ईमान थे, बे-ईमान हो गए हैं हम! रो पड़ी आँखें मेरी, उजड़े चमन को देखकर,. और आँखें मूंदकर, भगवान् हो गए हैं हम! प्रस्तुतकर्ता. आनन्द वर्धन ओझा. नई पोस्ट. 6 वर्ष पहले. बालग&...
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मुक्ताकाश....: December 2012
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मुक्ताकाश. मंगलवार, 18 दिसंबर 2012. यादों के आइने में कवि बच्चन. समापन क़िस्त]. बाद के वर्षों में पत्राचार और संवाद शिथिल होता गया। बच्चनजी अस्वस्थ रहने लगे थे और पढ़ना-लिखना उनके लिए कठिनतर होता गया था। दिन पर दिन बीतते रहे। . वह 6 नवम्बर 1995 की सुबह थी। पिताजी मृत्यु-शय्या पर थे- शरीर की नितांत अक्षमता की दशा में- हतचेत से! भाभी इलाहाबादी में बोलीं- "ई तकलीफों कौन रही! हम इधर से जात रही तो सोचा तोसें मिल लेई! प्रस्तुतकर्ता. आनन्द वर्धन ओझा. 10 टिप्पणियां:. नवीं क़िस्त]. और उन्हें प&...2 टिप...
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मुक्ताकाश....: October 2014
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मुक्ताकाश. रविवार, 12 अक्तूबर 2014. मेरे पुण्य-प्रसून. समय के साथ. बहता रहा जीवन. हम अनजाने ही. बोते रहे अपनी ज़मीन पर. ऊर्जा क्षीण हुई तो ज्ञात हुआ. यश उपजानेवाले बीज तो. अंकुरित हुए ही नहीं. जाने कहाँ, किस मरु में. जा पड़े थे वे. कि कुंद हो गए! अपयश के बीजों ने. उर्वर या बंजर की परवाह न की,. वे तो पूरी उमंग से उठ खड़े हुए. विशाल कंटीली झाड़ियों-से. जिसमें चक्रवाती हवाओं-सी. उलझी पड़ी है ज़िन्दगी! कब तक पुकारूं तुम्हें. कि आओ, सुलझा दो जीवन,. संवारो उसे,. मेरे साथ-. क्या पता,. वे बीज और-. नई पोस्ट. देख&...
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मुक्ताकाश....: January 2014
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मुक्ताकाश. मंगलवार, 21 जनवरी 2014. सहमे ज़माने रह गए. रूह एक फ़ना हुई, उसके फ़साने रह गए,. पत्थरों की नोंक पर ही अब निशाने रह गए! हम हुए बेदार बेहद, उनकी बला ठहरी रही,. अब तो ग़ैरत को मसलने के बहाने रह गए! कैसे कहें अच्छा हुआ, या हुआ बेहद बुरा,. हमनशीनों के न अब ठौर-ओ-ठिकाने रह गए! एक क़तरा आँख से था, जब टपकना चाहता,. ठहर जा कम्बख़त, तुझे किस्से सुनाने रह गए! मौत से भी क्या भली कोई शै होती है जनाब,. ख़ाक हुए सब मसलहे, किस्से पुराने रह गए! प्रस्तुतकर्ता. आनन्द वर्धन ओझा. रविवार, 12 जनवरी 2014. क्या ह...क्य...
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मुक्ताकाश....: May 2014
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मुक्ताकाश. शुक्रवार, 2 मई 2014. लिखूंगा तुम्हें भी. इस तरह परेशानकुन होने से क्या होगा ? सलीक़े से पंक्ति में खड़े रहो. करो अपनी बारी की प्रतीक्षा. सब्र और शान्ति से-. जिसका तुम्हें दीर्घकालिक अभ्यास भी है! लिखूंगा तुम्हें भी-. अवसर तो मिलने दो! मैं भी तो रौंदता फिरता हूँ. अर्थों को,. अनर्थों को भी-. उजाले अपने हिस्से में. खींच लाने की कवायद में. अंधेरों से लड़ता हूँ सौ-सौ बार रोज़. इस आपाधापी में वक़्त ही कहाँ मिलता है कि. थोड़ा वक़्त तो दो. कुचला गया है,. सौ-सौ मन वज़न के साथ,. और तुम साल भर. थोड़ी ...सोच...
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मुक्ताकाश....: April 2014
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मुक्ताकाश. रविवार, 27 अप्रैल 2014. उड़ता रहेगा जीवन…. मेरे घर के गलियारे में. बिजली की डोर से लटकता. प्यारा-सा घोंसला बनाया है. सुन्दर-सी चिड़िया ने।. मैं देखता हूँ उसे. जाने किस अचूक निशाने से. वह उड़ती आती है तीव्र गति से. और नीड़ के छोटे-से द्वार में जाकर. दुबक जाती है…! मैं निरंतर देखता हूँ. उसका श्रम, उसकी स्फूर्ति. और उसकी सम्मोहक उड़ान…! सोचता हूँ. छोटे-से नीड़ में. उसने क्या छुपा रखा है,. किसके लिए वह करती है. इतना श्रम…? बाहर से चुनकर वह. वह जानती है कि. बरसेंगे बादल! वह सब जानती है! सदस्यतì...
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मुक्ताकाश....: January 2015
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मुक्ताकाश. रविवार, 18 जनवरी 2015. देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर महाकवि निराला की संभवतः अप्रकाशित कविता. अगर नहीं हुई, तो निःसंदेह यह अत्यंत महत्त्व का दस्तावेज़ है ।. संभवतः, मेरे सौभाग्य से! मूल और टंकित प्रति के साथ आज इसे लोकार्पित कर धन्य हो रहा हूँ । - आनन्दवर्धन ओझा]. C/o Pandit Ramlalji garg,. Karwi, Banda (U.P.). प्रिय मुक्तजी,. श्रीरामकृष्ण मिशन लाइब्रेरी,. गूंगे नव्वाब का बाग़,. अमीनाबाद, लखनऊ ।. उत्तर ऊपर के पते पर । नमस्कार ।. उगे प्रथम अनुपम जीवन के. जन-गण-तन-मन-धन-धर्मी हे! और देव-प&#...
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मुक्ताकाश....: October 2013
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मुक्ताकाश. रविवार, 20 अक्तूबर 2013. जियोगे तुम. दिवंगत पूज्य पिता के नाम एक काव्य-पत्र]. जानता था- . मुक्त' होते ही. तुम छोड़ दोगे. मेरी उँगलियाँ. और मेरी समस्त चेतना पर. छा जाओगे,. तुम मेरी सांसों में बहोगे,. मेरी ही आँखों से. मुझे घूरोगे. और मेरी धडकनों में. धड़कोगे तुम.…! तुम मेरे घर के आँगन में. दूब बनकर उपजोगे -. जिस घर की दीवारों पर. चलेंगे हथौड़े-. नई दीवारों के लिए…! तुम उन दीवारों के. झरते-गिरते ईंट-गारे में. दबोगे, पिसोगे फिर से. लेकिन,. तुम जियोगे कवि …! प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. चित्र...द्व...
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मुक्ताकाश....: March 2014
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मुक्ताकाश. सोमवार, 31 मार्च 2014. वरेण्य कवि भवानीप्रसाद मिश्र : जिन्हें कविता लिखती थी. समापन क़िस्त]. जिस तरह हम बोलते हैं,. उस तरह तू लिख,. और इसके बाद भी. हमसे बड़ा तू. पिताजी बोले- 'तुम दिल्ली से आ सकते हो, मैं अपने घर से भी यहाँ तक नहीं आ सकता? प्रस्तुतकर्ता. आनन्द वर्धन ओझा. 2 टिप्पणियां:. रविवार, 30 मार्च 2014. वरेण्य कवि भवानीप्रसाद मिश्र : जिन्हें कविता लिखती थी. दूसरी क़िस्त]. मैंने अपने आपको समेटकर कहा- 'जी हाँ! प्रस्तुतकर्ता. आनन्द वर्धन ओझा. 2 टिप्पणियां:. विनय, अनन्य प्र&#...की कथ...
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मुक्ताकाश....: November 2014
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मुक्ताकाश. सोमवार, 3 नवंबर 2014. दो-दो फुलझड़ियाँ. दीवाली की रात बिताकर. प्रात-भ्रमण पर निकला घर से. बहुत सबेरे,. अंधियारा तो कहीं नहीं था,. फिर भी किरणों का पता नहीं था. चलते-चलते देखा मैंने. जश्न अनूठा-. नाकाम पटाखों,. दगे पटाखों,. छुर-छुर करके बुझे पटाखों. और रहे अधजले पटाखों को. चुनते देखा सड़क-किनारे. उन निर्धन बच्चों को मैंने. जिन्हें नहीं मिले थे. रात पटाखे! हसरत की देखीं तेज़ हवाएँ. उन चेहरों पर. जिन पर कल थी गहरी मायूसी. आज मिली थी उन्हें ख़ुशी,. चौबारे के इस घर से. जो खूब जतन से,. कल तो क...