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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: March 2013
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. शनिवार, 2 मार्च 2013. बहाने ढूंढता है. गढ़ता है. और मढ़ देता है. भाषा का लेप. एक अतिरेक. और अतिरिक्त. अनावश्यकता को. जन्मता है. संवेदना का पूरक नहीं. आभास है. प्रस्तुतकर्ता. चैन सिंह शेखावत. शनिवार, मार्च 02, 2013. प्रतिक्रियाएँ:. 1 टिप्पणी:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुल पेज दृश्य. ब्लॉग सूची. अघायी औरतें. 3 दिन पहले. Image: pi...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: July 2010
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. बुधवार, 28 जुलाई 2010. कविता और रोहिडे का फूल. एक रोहिड़े का फूल है. गर्मियाँ कसमसाती हैं. भीतर कहीं गहरे तो. रोहिड़ा सुर्ख़ सा सिर तान. धरा पर कौंध उठता है. आस पास जब. सारी निशानियों के पर उतर जाते हैं. अस्तित्वों के ढूह. शुष्क और बंजर नज़र आते हैं. न मालूम. कहाँ से शेष बची कुछ लालिमा को. यत्न से निथारकर. रोहिड़ा. तड़पती प्रेमिका की धरती पर. प्रेम के दो फूल टांक देता है. रोहिड़े का यह फूल. मेरी कविता है. हवा की बेचैनियाँ. जब करवट बदलती हैं. ठीक वैसे ही. उफ़ तक न करना. पाँव...शिक...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: June 2010
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. रविवार, 27 जून 2010. नमी कायम है. सब अपनी अपनी लय. में गाते हैं. तुम भी गाओ. अलापो चाहे. या फिर टेक लो. साज सजे तो सजाओ. लेकिन इस गीत को गाओ. उगे हों भले ही. कंठ में. शूलों के बाड़े. या फिर रोप जाता हो कोई. रेत रंगे आकाश में. अँधेरे की. पंखों वाली कीड़ियों. के बीज. सुर ताल के. इस अकाल में भी. शब्दों की नमी. अभी कायम है बराबर. तुम अपनी जड़ों से. पूछकर देखो. दो एक पुरानी धुनें. बची होंगी अवश्य. उन्हीं को सींचो. सींचकर साधो. बहुत बासी नहीं हुआ अभी. रविवार, जून 27, 2010. निर्म...थमा...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: December 2010
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. शनिवार, 25 दिसंबर 2010. रात की बात. धुंधियाए आकाश के आईने में. चाँद उदास दिखता है. अंधेरों से दामन छुड़ा कर. रात ने छिटकी तारों जड़ी चूनर. सुखाने डाल दी आकाश की अलगनी पर. यादों के मिटने का वक़्त है. रात के साये. चाँद के मफलर से लिपटे. उदासी के रंग को गहरा कर रहे. प्रस्तुतकर्ता. चैन सिंह शेखावत. शनिवार, दिसंबर 25, 2010. प्रतिक्रियाएँ:. 6 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. एक और भीष्म. नई पोस्ट. खुश ह...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: February 2011
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. रविवार, 13 फ़रवरी 2011. इस मौसम में. जब भी गुज़रती है. सरसों के खेत से होकर. दो चार पीले फूल टंग जाते हैं. उसकी कमीज़ के बटन में. और पीठ पर गूंजती दिखती है. एक भीनी भीनी सी थाप. इन रंगों और खुशबुओं की उम्र. कोई बहुत ज्यादा तो नहीं. मगर सूखे मौसमों के दौर में. आँखों में उतार लेंगे वो पीली सुगंध. छाती भर सांस. कुछ कदम और चलने का हौसला देगी. प्रस्तुतकर्ता. चैन सिंह शेखावत. रविवार, फ़रवरी 13, 2011. प्रतिक्रियाएँ:. 11 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. नई पोस्ट. 3 दिन पहले. खुश ह&#...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: March 2010
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. मंगलवार, 30 मार्च 2010. नयन हो गए आज फिर सजल ।. याद वो आने लगे प्रतिपल ।. टूट के बरसा अबके सावन. सहमा-सिहरा घर का आँगन. हाल ये उनसे कह दे मन. हरिया गयी है पीर चंचल. याद वो आने लगे प्रतिपल।. प्राण वेदना विकल सघन सी. पली बढ़ी फैली है वन सी. विगत कथाएँ छाई घन सी. कठिन है कोई जाए बहल. याद वो आने लगे प्रतिपल।. प्रस्तुतकर्ता. चैन सिंह शेखावत. मंगलवार, मार्च 30, 2010. प्रतिक्रियाएँ:. कोई टिप्पणी नहीं:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! मदमस्त मेरे. उनकी सुन. रोम-र...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: शब्द
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. शनिवार, 2 मार्च 2013. बहाने ढूंढता है. गढ़ता है. और मढ़ देता है. भाषा का लेप. एक अतिरेक. और अतिरिक्त. अनावश्यकता को. जन्मता है. संवेदना का पूरक नहीं. आभास है. प्रस्तुतकर्ता. चैन सिंह शेखावत. शनिवार, मार्च 02, 2013. प्रतिक्रियाएँ:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 1 टिप्पणी:. 12 मार्च 2013 को 2:28 am. Umda likha aap ne. उत्तर दें. टिप्पणी जोड़ें. अधिक लोड करें. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. 3 दिन पहले. विभाजन क...Image: pi...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: April 2011
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. गुरुवार, 28 अप्रैल 2011. बीकानेर की एक धूल भरी शाम. बीकानेर की एक धुल भरी गरम. उदास शाम है यह. छड़े-बिछड़े रूँख रेत के बोझ से दबे. कंधे लटकाए खड़े हैं. शहर भर की आँखों में. एक निष्क्रिय प्यास है. इतिहास के खंडहरों में फड़फडाता है एक कबूतर. आकाश कुछ बेचैन-सा करवट बदलता है. काँख में दबा किला कसमसाता है. चौड़े सीने और लम्बी बाँहों वाली. ये पुरानी दीवारें. अपनी आँखों में अंगारे लिए घूरती हैं. सर्किलों और सड़कों को. फूली साँस लिए अटके हैं. जल की बूँद-सा. अहसास रहेगा. नई पोस्ट. इस गै...
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी: September 2010
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ज़िन्दगी-ऐ-ज़िन्दगी. मंगलवार, 7 सितंबर 2010. जो रोशनी दे. अपने अपने परमात्माओं को पुकारा. हमें रास्ता दिखाओ. हम भटके हुए हैं. पर दिशाओं ने. चुप्पी की चादर ओढ़ ली. कोई नहीं आया. इतने में सूरज के दरीचे खुले. रोशनी के रास्ते पिघले. अपने अपने. घरों को चल दिये. प्रस्तुतकर्ता. चैन सिंह शेखावत. मंगलवार, सितंबर 07, 2010. प्रतिक्रियाएँ:. 2 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 1 टिप्पणी:. नई पोस्ट. खुश हो...श्र...
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