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VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक )

राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). बुधवार, 21 मई 2008. हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ. डॉ. हरेराम पाठक. विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी. ४) प्रस्तुत साक्षात्कार के संबंध में भेंट नायक को अपना उद्देश्य स्पष्ट करें।. ६) आप जब भी प्रश्न करें इसका ख्याल अवश्य रखें कि आप सामान्य जनता की ओर स...९) साक्षात्कार के दौरान कोई ऐसा प्...ज्ञानवर्द्धक साक्ष...प्रिंट एवं...मौलि...

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राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). बुधवार, 21 मई 2008. हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ. डॉ. हरेराम पाठक. विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी. ४) प्रस्तुत साक्षात्कार के संबंध में भेंट नायक को अपना उद्देश्य स्पष्ट करें।. ६) आप जब भी प्रश्न करें इसका ख्याल अवश्य रखें कि आप सामान्य जनता की ओर स&#2...९) साक्षात्कार के दौरान कोई ऐसा प&#2381...ज्ञानवर्द्धक साक्ष&#2...प्रिंट एव&#2306...मौल&#2367...
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राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). बुधवार, 21 मई 2008. हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ. डॉ. हरेराम पाठक. विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी. ४) प्रस्तुत साक्षात्कार के संबंध में भेंट नायक को अपना उद्देश्य स्पष्ट करें।. ६) आप जब भी प्रश्न करें इसका ख्याल अवश्य रखें कि आप सामान्य जनता की ओर स&#2...९) साक्षात्कार के दौरान कोई ऐसा प&#2381...ज्ञानवर्द्धक साक्ष&#2...प्रिंट एव&#2306...मौल&#2367...

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VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ): मैं कहता हूँ अदब से कुछ न कुछ होता है : शहरयार

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राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). शनिवार, 10 मई 2008. मैं कहता हूँ अदब से कुछ न कुछ होता है : शहरयार. डॉ. जुल्फिकार. आपका जन्म कब और कहाँ हुआ? आप भारत के सुविख्यात कवि हैं, आपकी शायरी का आग़ाज कब से होता है? आपक का नाम कुँवर अखलाक मुहम्मद खान है, लेकिन आपने शहरयार नाम क्यों रख लिया? आजकल आप फिल्मों के लिए क्यों नहीं लिख रहे? जेहन उनके साफ नहीं हैं, वहाँ को...आपने एक लम्बा युग देख&#2366...आप जनवादी ल&#23...आप इसस&#2...

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VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ): April 2008

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राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). रविवार, 27 अप्रैल 2008. दंगे-फसाद कुछ लोगों के बनाये भ्रम हैं : एक साधारण होटल वाला. डॉ. मेराज अहमद. सबसे पहले आप अपना नाम और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में थोड़ा-सा बतायें? आप काम क्या करते है? मैं एक होटल चलाता हूँ। यही साधारण-सा चाय पानी का।. ३५ साल हो गए।. आपने पढ़ाई कितनी की है? मैंने इंटर किया है।. कहाँ से? पढ़ाई-लिखाई बहुत जरूरी है&#2...क्योंकि इसम&#23...आपको ऐसा ...बिल...

3

VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ): दलित-मार्क्सवादियों का संयुक्त गठबंधन कट्टरवाद से लड़ने मे&#2306

http://vangmayinterview.blogspot.com/2008/05/blog-post_660.html

राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). शुक्रवार, 16 मई 2008. दलित-मार्क्सवादियों का संयुक्त गठबंधन कट्टरवाद से लड़ने में कारगर भूमिका निभा सकता है : कंवल भारती. अंशुमाली रस्तोगी. अभी तक आपने अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखी? मैंने आत्मकथा क्यों नहीं लिखी? प्रायः देखने में आया है राजनीतिक दलों ने दलितों के आर&#23...प्रस्तुतकर्ता शगुफ्ता नियाज़. लेबल: साक्षात्कार. 0 टिप्पणियाँ:. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. प्रिंट ...मेर&#2375...

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VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ): हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

http://vangmayinterview.blogspot.com/2008/05/blog-post_6775.html

राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). बुधवार, 21 मई 2008. हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ. डॉ. हरेराम पाठक. विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी. ४) प्रस्तुत साक्षात्कार के संबंध में भेंट नायक को अपना उद्देश्य स्पष्ट करें।. ६) आप जब भी प्रश्न करें इसका ख्याल अवश्य रखें कि आप सामान्य जनता की ओर स&#2...९) साक्षात्कार के दौरान कोई ऐसा प&#2381...ज्ञानवर्द्धक साक्ष&#2...160; 10 मई 2009 को 12:20 pm.

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VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ): उत्तर-आधुनिकतावाद को एक मुहावरे के रूप में अपनाये जाने से ह&#23

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राही मासूम रजा साहित्य. रेडियो सबरंग डाट काम. वाङ्मय पत्रिका ब्लाग. वाङ्मय पत्रिका. VANGMAY INTERVIEW ( इन्टरव्यू विशेषांक ). शुक्रवार, 16 मई 2008. देवेन्द्र चौबे, अभिषेक रौशन, उदय कुमार एवं रेखा पाण्डेय. देवों की विजय दानवों की. हारों का होता युद्ध रहा. संघर्ष सदा उर अन्तर में. जीवित रह नित्य विरुद्ध रहा।. प्रस्तुतकर्ता शगुफ्ता नियाज़. लेबल: साक्षात्कार. 0 टिप्पणियाँ:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. साक्षात्कार. शगुफ्ता नियाज़. साहित्य एवं मीडिय...मेरे पहले र&#23...उत्तर-आध&...

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साहित्यालोचन: मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया

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Thursday, July 17, 2008. मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया. रेणु ने जिस अंचल को `मैला आंचल' में नायकत्व प्रदान किया है, वह कैसा अंचल है? लेकिन धरती माता अभी स्वर्णांचला है! दुलारचंद कापरा को जानते हो न? मैला आंचल : एक निजी प्रतिक्रिया. एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री ने मानव-चरित्र पर समाज को महत्त्व देने के कारण संथालों को ज़मीन लौटाने...मुट्ठी खोलिए! बस्ता दीजिए बालदेवजी! मैं जलकर मर जाऊंगी, मगर! हे भगवान! सतगुरु हो! जै गांधीजी! बाबा .जै बावनदासजी! लछमी रो रही है. नंदकिशोर नवल,. वागर्थ अंक १२७. Tags : #मै...

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साहित्यालोचन: *** भारतीय सामंतवाद

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Tuesday, May 12, 2009. भारतीय सामंतवाद. भिन्नता है तो कितनी? धर्म और धार्मिक संस्थाएँ यूरोपीय ढंग का वर्चस्व भारत में स्थापित क्यों नहीं कर सकीं? मिलकर सामाजिक सोपानिकता की जड़ता को और अधिक सुदृढ़, निरंकुश और आत्तायी बना दिया।. 48 ऋग्वेद, 8/8/3. 49 के. दामोदरन, भारतीय चिंतन परम्परा, पृ॰ 209. 50 वही, पृ॰ 208. 51 रोमिला थापर, भारत का इतिहास, पृ॰ 221. 53 हरबंस मुखिया, मध्यकालीन भारत: नए आयाम, पृ॰ 87. 54 मार्क ब्लाख, समांती समाज, भाग-2, पृ॰ 219. 55 दर्शन कोश, पृ॰ 702. 61 वही, पृ॰ 211-212. इस आलेख क&#23...

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साहित्यालोचन: *** खोजने दो मुझे अपना खुद का वसंत !

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Monday, April 15, 2013. खोजने दो मुझे अपना खुद का वसंत! ज के साहित्य में वसंत की पड़ताल की जाए तो निश्चित ही यह समझ बनती है कि कहीं साहित्य से उसका सम्बन्ध ऐतिहासिक तो नहीं था! साहित्य में वसंत की यह परंपरा एक लम्बे समय या कालान्तारों के. साथ चलती रही लेकिन अपने समकालीन पड़ाव पर आते हुए वह इस तरह से बिखरी कि उसका अनुमोदन. गैर-मानवतावादी प्रवृत्तियों से! कह गए सारे अग्रज ऋतु वसंत की. है मदमाती छलकाती यौवन सौन्दर्य प्रेम का. क्या सचमुच यही वसंत है! डॉ. अरुणाकर पाण्डेय. आभार सहित). April 15, 2013 at 10:44 PM.

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साहित्यालोचन: *** 'सिंदूर तिलकित भाल' की व्याख्या

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Thursday, August 14, 2008. सिंदूर तिलकित भाल' की व्याख्या. सिन्दूर. नागार्जुन. परिस्थिति. तुम्हारा. सिंदूर. व्यक्ति. चाहेगा. उच्छ्वास. डाल दे. निःश्वास. किन्तु. चिंता. प्रत्यक्ष. स्मृति. विस्मृति. भींगी. स्मृति. लीचियां. मिथिला. कुमुदिनि. नीलिमा. व्यक्ति. किन्तु. प्रवासी. कहेंगे. मरूंगा. देंगे. निर्बाध. सुनोगी. रहूंगा. सांध्य. पश्चिमांत. लालिमा. सुमुखि. तुम्हारा. सिंदूर. व्याख्या). सिंदुर तिलकित भाल. कालिदास. प्रो. अजय तिवारी. से साभार. आप देख सकते हैं इनकी पुस्तक. Posted by भास्कर रौशन. परम्पर&#23...

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साहित्यालोचन: *** ‘क़िस्सा कोताह’ : एक कवि की बहक

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Sunday, June 2, 2013. 8216;क़िस्सा कोताह’ : एक कवि की बहक. क़िस्सा क्या है. कहानी का कच्चा माल. कहानियों के इस कच्चे माल को बरतने में राजेश जोशी ने कोई कोताही नहीं बरती और अपने पाठकों के लिए विधागत सीखचों के बंधन से मुक्त एक. मुक्त-सा गल्प. रच डाला. यह उन्मुक्तता. किस्सा कोताह. में छाई हुई है. मुक्त-सा इसलिए भी कि. किस्सों को कहानी बनने में वक्त लगता है. एक पूरी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. हो जाते हैं. इस अर्थ में. किस्सा कोताह. एक अजीब-सी लत. किस्सा कोताह. बनते रहना. पाँच किस्...इसमें द&#...क़&...

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साहित्यालोचन: *** कबीर के बहाने आधुनिकता पर एक बहस

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Wednesday, November 20, 2013. कबीर के बहाने आधुनिकता पर एक बहस. बीर अपने समय में आधुनिक थे. यह कहने का फैशन. सा चल पड़ा है। इस कथन के पीछे जो विचार. महावीर या बुद्ध इस बर्बर और अवमानवीकृत आधुनिकता का ठप्पा अपने ऊपर लगवाना भी चाहते हैं या नहीं. चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोए। दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए. 2404; दूसरा सवाल यह है कि क्या हम आधुनिक हैं. और क्या जैसे हम आधुनिक हैं. वैसे आधुनिक कबीर हो सकते थे. 8216; कबीर. ब्रिटेन. फ्रांस. 8216; अकथ कहानी प्रेम की. 8216; उत्तर आधुनिक. 8217; पद का इस...

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साहित्यालोचन: *** सुख की उपभोक्तावादी परिभाषाओं के विरूद्ध : ईदगाह

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Monday, September 1, 2014. सुख की उपभोक्तावादी परिभाषाओं के विरूद्ध : ईदगाह. आधापेट खा पाना. भरपेट खाने को पा जाना. प्रेमचंद के लिये विपन्नता से यह बेखबरी. यह संतोष और धैर्य वस्तुतः क्या अर्थ रखते हैं. अभाव और गरीबी का महिमामंडन जो वस्तुतः गरीबी के ख़िलाफ़ एक कवच की तरह इस्तेमाल होना है. दूसरे को दिखाना. किन लोगों के लिये अवसर. कुछ होता हुआ प्रत्यक्ष दिखता है. कुछ मिल चुका होता है. इन डिफेंस ऑफ़ ग्लोब्लाइज़ेशन. के आधार पर।. जब आवे संतोषधन सब धन धूरि समान. तेन त्यक्तेन के अन&...पता है : s. प्र&#2366...

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साहित्यालोचन: परम्परा का मूल्यांकन

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Sunday, June 8, 2008. परम्परा का मूल्यांकन. नयी सभ्यता को पुरानी सभ्यता की ज़रूरत क्या है? रामविलास शर्मा,. परम्परा का मूल्यांकन. से साभार. Posted by भास्कर रौशन. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Share on Facebook'. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Share on Twitter'. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Add to Delicious'. परम पर क म ल य कन. Rel='nofollow' target=' blank' title='Digg This Post'. परम पर क म ल य कन. पता है : s. गा&#23...

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साहित्यालोचन: दलित आत्‍मकथाओं का सच

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Wednesday, July 29, 2009. दलित आत्‍मकथाओं का सच. क्‍या लदोई और जूठन खाया गैर दलित लिख सकता है उसी अनुभूति के साथ जिस अनुभूति के साथ इसके भोक्‍ता रहे दलित लेखक? क्‍या ये दलित साहित्‍यकार किसी दबाव में आत्‍मकथाएं नहीं लिख रहे हैं? शरण कुमार लिम्‍बाले की पत्‍नी यह प्रश्‍न करती हैं ‘‘कि यह सब लिखने से क्‍या फायदा? तुम क्‍यों लिखते हो? कौन अपनाएगा हमारे बच्‍चों को? अपने को भंगी, चमार और पासी कह सके? सन्‍दर्भ ग्रन्‍थ सूची. 2 कथाक्रम, जनवरी-मार्च, 2005, पृ0-63. 6चिन्‍तन की परम्&#82...8चिंतन की...12चि&#230...

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