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आबल-ताबल: हरनाथपुर वाया कोलकाता
http://aurmainwahhun.blogspot.com/2012/08/blog-post_24.html
और मैं वह हूं कि गर खुद पे कभी गौर करूं, गैर क्या खुद मुझे नफरत मेरी औकात से है.।।।. Friday, August 24, 2012. हरनाथपुर वाया कोलकाता. हरनाथपुर वाया कोलकाता -1. घर के पुराने कोने में. नाखून से खुरचकर लिखा. तुम्हारे नाम पर मिट्टी के लेप चढ़ गए. खेत में जो कनबाली छुपाई थी तुम्हारी. वहीं से एक रास्ता गुजरता शहर की ओर जाता है. नहीं रहे बेर के पेड़. जामुन का पेड़ ढह गया पिछली आंधी में. अब नहीं लड़ता कोई. अपने-अपने आम के पेड़ के लिए. महुए के दो पेड़. अब वहां बन गए हैं घर. छब्बीस साल पहले. पहली बार म&...हुग...
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आबल-ताबल: ‘उत्तर प्रेम' श्रृंखला की कविताएं
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और मैं वह हूं कि गर खुद पे कभी गौर करूं, गैर क्या खुद मुझे नफरत मेरी औकात से है.।।।. Saturday, August 25, 2012. 8216;उत्तर प्रेम' श्रृंखला की कविताएं. उत्तर प्रेम -1. भूखे नट की तरह एक पतली रस्सी पर चलता हूं. शिकारी की आंख से. हरिण की तरह खुद को बचाता. ढेर सारे झूठ सच की तरह बोलता. जैसे ढेर सारे सच झूठ की तरह. आसमान की ओर मुंह करके. पता नहीं किसकी सलामती की दुआ करता हूं. खुद को खुद ही संबोधित करता. जैसे कोई पागल फकीर (कि लालन फकीर). किसी छूट गए लोक में. बावजूद सबके. किसी के लिए अब...हैं अस...जैस...
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आबल-ताबल: प्यार पर कुछ बेतरतीब बातें
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और मैं वह हूं कि गर खुद पे कभी गौर करूं, गैर क्या खुद मुझे नफरत मेरी औकात से है.।।।. Monday, August 27, 2012. प्यार पर कुछ बेतरतीब बातें. प्यार तुम्हारा. एक बच्चे की हंसी. जिसके हाथ में उसके पसंद का खिलौना. पिता के चेहरे का गर्व. बेटे के जीत जाने की एवज में. कवि की पूरी हो गई कविता. उसके माथे का सकून. खूब तनहाई में. बज उठी फोन की घंटी. भीषण सूखे में उमड़ आए जैसे. काले-काले बादल. प्यार तुम्हारा कुछ-कुछ वैसा.।. नदी के पार से आती. बांसुरी की एक पागल तान. गाय के थन से. जमीन के भीतर से. एक चवन्नी. गा...
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Prakash Jha : Champaran: WE SHALL OVERCOME...
http://prakashjhachamparan.blogspot.com/2009/04/we-shall-overcome.html
Sunday 12 April 2009. Champaran is my janma-bhoomi, Mumbai has been my karm-bhoomi. I have made both my name and fortune as a film maker. But I owe to repay my debt to Champaran, my birth place. Am I here looking for stardom and riches? Do I need either? What I need to do, I am doing. I have pledged to strive towards a singular goal : Bringing a smile to Champaran’s face. 12 April 2009 at 4:53 PM. 14 April 2009 at 9:50 AM. Http:/ paricharcha.wordpress.com/2009/04/13/age-limit-relaxation-for-women/. 31 Oc...
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आबल-ताबल: हरनाथपुर वाया कोलकाता
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और मैं वह हूं कि गर खुद पे कभी गौर करूं, गैर क्या खुद मुझे नफरत मेरी औकात से है.।।।. Friday, August 24, 2012. हरनाथपुर वाया कोलकाता. विमलेश त्रिपाठी. Subscribe to: Post Comments (Atom). व्यक्तिगत पन्ना. पहुंचने के लिए चित्र पर क्लिक करें.।. समकालीन लेखन और सिनेमा पर बतकही. पहुंचने के लिए चित्र पर क्लिक करें. कविता का किताब. जानने के लिए चित्र पर क्लिक करें. कहानी की किताब. भारतीय ज्ञानपीठ. विमलेश त्रिपाठी. View my complete profile. नई रचनाशीलता का युवा मंच. Picture Window template. Powered by Blogger.
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आबल-ताबल: एक पागल आदमी की चिट्ठी
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और मैं वह हूं कि गर खुद पे कभी गौर करूं, गैर क्या खुद मुझे नफरत मेरी औकात से है.।।।. Friday, August 24, 2012. एक पागल आदमी की चिट्ठी. एक नाम लिखा होता है. एक अस्पष्ट -सा चित्र बना होता. जिसमें कई चेहरे होते हैं. कोई भी चेहरा साबुत नहीं. कुछ जरूरी शब्द धुंधलाए. पिघल गए होते हैं खारे पानी से. वह जीवन भर रहती है. एक गंदे पोटले में. एक पागल आदमी की चिट्ठी. कभी पोस्ट नहीं होती.।. पागल आदमी की चिट्ठी में. प्रेम नहीं लिखा होता. वह एक अन्य ही लिपि होती है. पागल आदमी की लिपि को. खाए अघाए लोग. हंसती ह&...नौक...
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आबल-ताबल: August 2012
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और मैं वह हूं कि गर खुद पे कभी गौर करूं, गैर क्या खुद मुझे नफरत मेरी औकात से है.।।।. Monday, August 27, 2012. प्यार पर कुछ बेतरतीब बातें. प्यार तुम्हारा. एक बच्चे की हंसी. जिसके हाथ में उसके पसंद का खिलौना. पिता के चेहरे का गर्व. बेटे के जीत जाने की एवज में. कवि की पूरी हो गई कविता. उसके माथे का सकून. खूब तनहाई में. बज उठी फोन की घंटी. भीषण सूखे में उमड़ आए जैसे. काले-काले बादल. प्यार तुम्हारा कुछ-कुछ वैसा.।. नदी के पार से आती. बांसुरी की एक पागल तान. गाय के थन से. जमीन के भीतर से. एक चवन्नी. गा...