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बेचैन आत्मा

बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. मेरे राम. हम कहते. तेरे राम के शरीर में तो खून ही नहीं है, इसीलिए सफेद हैं। बड़े होने पर अपने झगड़े को याद कर हम खूब हंसते।. कुछ और समझ आईं तो लगा यह झगड़ा तो बड़ा व्यापक है! कबीर के राम और तुलसी के राम में भी भेद है! यह अलग बात है कि राम की कृपा से पिताजी गुजर गए लेकिन मकान कभी नहीं गिरा।. मां को कब देखा? बड़े भाई या बड़ी बहन को कब देखा? उनको पता चल गया तब? जय #राम जी की।. Links to this post. बड़ी द&...चली...

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बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. मेरे राम. हम कहते. तेरे राम के शरीर में तो खून ही नहीं है, इसीलिए सफेद हैं। बड़े होने पर अपने झगड़े को याद कर हम खूब हंसते।. कुछ और समझ आईं तो लगा यह झगड़ा तो बड़ा व्यापक है! कबीर के राम और तुलसी के राम में भी भेद है! यह अलग बात है कि राम की कृपा से पिताजी गुजर गए लेकिन मकान कभी नहीं गिरा।. मां को कब देखा? बड़े भाई या बड़ी बहन को कब देखा? उनको पता चल गया तब? जय #राम जी की।. Links to this post. बड़ी द&...चली...
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बेचैन आत्मा | devendra-bechainaatma.blogspot.com Reviews

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बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. मेरे राम. हम कहते. तेरे राम के शरीर में तो खून ही नहीं है, इसीलिए सफेद हैं। बड़े होने पर अपने झगड़े को याद कर हम खूब हंसते।. कुछ और समझ आईं तो लगा यह झगड़ा तो बड़ा व्यापक है! कबीर के राम और तुलसी के राम में भी भेद है! यह अलग बात है कि राम की कृपा से पिताजी गुजर गए लेकिन मकान कभी नहीं गिरा।. मां को कब देखा? बड़े भाई या बड़ी बहन को कब देखा? उनको पता चल गया तब? जय #राम जी की।. Links to this post. बड़ी द&...चली...

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बेचैन आत्मा: December 2013

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बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. फेसबुक से. उड़ रही हैं पतंगें. लगा रही हैं ठुमके. लड़ रहे हैं पेंचे. कट रही हैं. गिर रही हैं. लूटने के लिए. बढ़ रहे हैं हाथ. मचा है शोर…. भक्काटा हौsss. जब नहीं होती. हाथ में कोई डोर. हाथ मलते हुए ही सही. आपने भी महसूस किया होगा. कि उड़ने में. ठुमके लगाने में. पेंच लड़ाने में. कटने में. कटकर फट जाने/लुट जाने में. पतंग का कोई हाथ नहीं होता ।. अकेले में. अकेले में. चीनियाँ बदाम. कभी कोहरा. बसंत की आहट. टेशन-ट...

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बेचैन आत्मा: February 2014

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बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. कहाँ है बसंत? द़फ्तर जाते हुए. रेल की पटरियों पर भागते. लोहे के शहर की खिड़की से. बाहर देखता हूँ. अरहर और सरसों के खेत. पीले-पीले फूल. क्या यही बसंत है. सामने बैठी. दो चोटियों वाली सांवली लड़की. दरवाजे पर खड़े. लड़कों की बातें सुनकर. लज़ाते हुए. हौले से मुस्कुरा. देती है. कूदने की हद तक. उछलते हुए. शोर मचाते हैं. क्या यही बसंत है. अपने वज़न से. चौगुना बोझ उठाये. देर तक हाँफती. जल्दी-जल्दी. चीँटी. फागु...8217; भ&#...

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बेचैन आत्मा: July 2014

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बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. लोहे के घर से.2. मतलब हम एक ही देश के निवासी है।. नोटः- यह सब फेसबुक में यूँ ही लिखता और शेयर करता चला गया। जब अंतिम पैरा शेयर किया तो कुछ बढ़िया कमेंट आये जिससे बात और साफ़ हुई. सनातन कालयात्री. और गंगा का पानी रामेश्वरम को क्यों चढ़ता है? देवेन्द्र पाण्डेय. Links to this post. Labels: यात्रा. लोहे का घर. ढल रहा था दिन. अकेले लेटा था. भागते घर के ए.सी. कमरे में. साइड वाले बिस्तर पर. सामने थी. हुआ एहसास. हवा...

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बेचैन आत्मा: April 2015

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बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. गेहूँ. हम शहरियों के लिए. कितना कठिन है. सुखाना. चक्की से पिसा कर. घर ले आना. उनकी नियति है. पकने की प्रतीक्षा करना. दंवाई करना. खाने के लिए रखकर. बाजार तक ले जाना. गेहूँ! हमारे पास विकल्प है. बाज़ार से. सीधे खरीद सकते हैं. उनके पास कोई विकल्प नहीं. उन्हें. उगाना ही है. गेहूँ. हम खुश हैं. उनकी मजबूरी के तले. हमारे सभी विकल्प. सुरक्षित हैं! देवेन्द्र पाण्डेय. Links to this post. Labels: कविता. एक गाय आकर.

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बेचैन आत्मा: March 2014

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बेचैन आत्मा. लेखाकर्म. लेखाकर्म. ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी. आनंद की यादें. चित्रों का आनंद. हाड़ कंपाने वाली ठंड में. सूट-बूट पहनकर. एसी. में बैठकर. इस्की-व्हिस्की चढ़ाकर. किसी को हलाल कर. ओटी-बोटी चाभ कर. नाचते-झूमते. संपन्नता की नुमाइश करने के लिए आता है. अंग्रेजी नववर्ष।. बर्गर, पिज़्जा या फिर. टमाटर की चटनी के साथ. आलू या छिम्मी का परोंठा खा कर. मोबाइल में मैसेज भेज कर. देर रात तक जाग-जाग कर. टी.वी. में. सपने देखता. बजट बिगाड़ता. आज की नींद. कल की सुबह खराब करता. तब चौंकता है. Links to this post.

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होकर भी नहीं होना..: February 2011

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होकर भी नहीं होना. क्योंकि अक्सर यहाँ होते हुये भी मैं यहाँ नहीं होता।. Sunday, February 6, 2011. नोट्स…. 2- उस दिन जब वो पारदर्शी काँच के उस पार थी, मैं उसे देख सकता था… उसे महसूस कर सकता था… उसके होठों को पढ सकता था… लेकिन हाथ बढाकर भी उसे छू नहीं सकता था…. कंप्लीटली इनकंप्लीट…. मेरे कुछ नोट्स ‘निर्मल‘. के लिये…. तस्वीर मानव के ब्लॉग. Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय). Links to this post. Labels: कुछ एं वें ही. निर्मल वर्मा. Subscribe to: Posts (Atom). इधर भी हैं अपन. अज़दकी अलमारी. वे दिन. एक आलसी ...

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|| आकाश के उस पार ||: लकीरें

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आकाश के उस पार. लकीरें. उस सुबह जब आँख खोलीं , थीं लकीरें. किसने आखिरकार खींची ये लकीरें ,. कल तलक हम साथ हँसते , साथ रहते. आज दोनों को अलग करतीं लकीरें. साथ थे , पर आज से दोनों अलग हैं ,. अब नहीं वो शाम की महफ़िल सजेंगीं ,. उस राह पर तो आज भी निकलेगा तू , पर. अब नहीं वो राह मेरे घर रुकेंगीं ,. चौपाल पर बैठूंगा जाके रोज , लेकिन. अब नहीं साझे की वो चिलमें जलेंगीं,. प्यार अपना आज कम लगने लगा है ,. प्यार से शायद बड़ी हैं ये लकीरें. इस साल भी रमजान होगा घर हमारे ,. Posted by Akash Mishra. ये कलम ह&#236...

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शब्दों की मुस्कुराहट : Jun 20, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 जून 2014. दिन में फैली ख़ामोशी :). चित्र - ( गूगल से साभार ). जब कोई इस दुनिया से. चला जाता है. वह दिन उस इलाके के लिए. बहुत अजीब हो जाता है. चारों दिशओं में जैसे. एक ख़ामोशी सी छा जाती है. दिन में फैली ख़ामोशी. वहां के लोगो को सुन्न कर देती है. क्योंकि कोई शक्श. इस दुनिया से. रुखसत हो चुका होता है! C) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. संजय भास्‍कर. नई पोस्ट. आसमान...

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शब्दों की मुस्कुराहट : May 3, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). वक्त के साथ चलने की कोशिश - वन्दना अवस्थी दुबे :). ब्लॉगजगत में वन्दना अवस्थी दुबे. एक जाना पहचाना नाम है (अपनी बात - वक्त के साथ चलने की लगातार कोशिश है वंदना जी की ) से प्रभावित है! की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ! मुट्ठी भर दिन. चुटकी भर रातें,. गगन सी चिंताएँ,. किसको बताएं? जागती सी रातें,. दिन हुए उनींदे,. समय का विलोम. कैसे सुलझाएं? नई पोस्ट. भास्कर ...शब्...

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शब्दों की मुस्कुराहट : Nov 20, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 नवंबर 2014. दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप - आशालता सक्सेना :). इसी के साथ बहुत सी यादें भी जुडी हुई है! आशा जी कि कलम से :-. कुछ तो ऐसा है तुम में. य़ुम्हारी हर बात निराली है. कोई भावना जाग्रत होती है. एक कविता बन जाती है! लिखते लिखते कलम नहीं थकती. हर रचना कुछ कहती है. हर किताब को सहेज कर रखूँगा! कवयित्री (. आशा सक्सेना. C ) संजय भास्कर. भास्...शब्...

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शब्दों की मुस्कुराहट : Aug 25, 2014

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 25 अगस्त 2014. वो जब लिखती हैं कागज पर अपना दिल निकाल कर रख देती है - अनुलता राज नायर :). वो जब लिखती है तो बस कागज़ पर अपना अपना दिल निकाल कर रख देती है ऐसी ही है लेखिका अनुलता राज नायर. कुछ लाइन पेश है :). एक शोख़ नज़्म. फिसल कर मेरी कलम से. बिखर गयी. धूसर आकाश में! भीग गया हर लफ्ज़. बादलों के हल्के स्पर्श से. और वो बन गयी. एक सीली उदास नज़्म! तभी मैंन&...पुर&#2366...

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शब्दों की मुस्कुराहट : Feb 6, 2015

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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 06 फ़रवरी 2015. मेरी नजर से चला बिहारी ब्लॉगर बनने - संजय भास्कर. सलिल वर्मा. जी नाम तो आप सभी जानते ही हो अरे भईया वही चला बिहारी ब्लॉगर बनने. पर लिखे या एकलव्य. दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं. जिस तरह शाख से तोड़े हुए इक पत्ते का रंग. माँद पड़ जाता है कुछ रोज़ अलग शाख़ से रहकर. ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद. C ) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. भास्क...भास...

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सम्वेदना के स्वर: August 2011

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सम्वेदना के स्वर. भाव, रस और ताल से बने भारत की सम्वेदनाओं की अभिव्यक्ति. सम्वेदना के स्वर. यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,. जिसमें भाव. का प्रतीक आम आदमी का भा. बसता है. सम्वेदनाएँ. Wednesday, August 31, 2011. अन्ना हजारे और पीसी बाबू! इस पूरे आंदोलन के बीच बार-बार. किसी न किसी बात पर पीसी. बाबू बहुत याद आये। पीसी बाबू यानी पायाती चरक जी. इतनी जल्दी भूल गए आप! अखबार की. बिसात से व्याकुल. मन में. पी सी बाबू का कथन. गूंजता रहा! चैतन्य आलोक :. है क्या. 8221; को. इसके ब&#236...

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|| आकाश के उस पार ||: बचपन

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आकाश के उस पार. शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे अपना बचपन वापस नहीं चाहिए -. अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,. तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता. वो फिर से मैं करता कोई मीठी गलती ,. वो कोई मुझे ; प्यार से फिर बताता. वो जिद फिर से करता खिलौनों की खातिर ,. वो फिर से मचलता ; झूलों की खातिर. वो ललचायी नजरें दुकानों पे रखता ,. वो आँखों से टॉफी के हर स्वाद चखता. वो बचपन के साथी फिर से मैं पाता ,. वो तुतली जुबाँ में साथ उनके मैं गाता. वो गर पाक हो पाते इक बार ये मन. Posted by Akash Mishra. 13 October 2012 at 16:35.

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|| आकाश के उस पार ||: प्रियतम का प्यार - हास्य कविता ?

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आकाश के उस पार. प्रियतम का प्यार - हास्य कविता? सारी रात प्रियतम हमरे ,. दिल लगाकर पीटे हमको ,. फर्श पोंछने का दिल होगा ,. चोटी पकड़ घसीटे हमको ,. गला दबाया प्यार से इतने ,. अँखियाँ जइसे लटक गयीं हो ,. गाली इतनी मीठी बांचे ,. शक्कर सुनकर झटक गयी हो ,. पिस्तौल दिखा रिकवेस्ट किये ,. हम और किसी को न बतलायें ,. हम ; मन में ये फरियाद किये ,. ये प्यार वो फिर से न दिखलायें. वो तो अपनी सारी चाहत ,. सिर्फ हमीं पर बरसाते थे ,. चाय से ले कर खाने तक की ,. रोज रात को शयन कक्ष में ,. हम भी शक्ति-स&#2...ये ज&#236...

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Devendra Banhart comme Vous Ne L'Avez Jamais Vu. 10/11/2005 at 11:21 AM. 12/06/2008 at 5:34 AM. Soundtrack of My Life. Poughkeepsie-Devendra banhart. (Rejoicing in the Hands). Subscribe to my blog! I'm so sorry, and happy for them. Natalie Portman et le chanteur folk Devendra Banhart ne se quittent plus (içi à Cannes). Découvert au hasard sur le site du groupe :). Please enter the sequence of characters in the field below. Posted on Thursday, 12 June 2008 at 5:34 AM. At the Bikini on 17 November 07.

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This is my yet another feeble attempt at blogging my way to glory of recginition in this world of bits and bytes. Thursday, January 28, 2010. Of thoery of relativity. I have always beleived that no absolute can exist without being relative. All the facts and figures that we percieve to be absolute , can be attributed to existence of some relative means of measure. In this way each fact that we know is depenedend upon one or more set of facts and the varying nature of these facts bring in relativity.

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Give it a thought. Wednesday, April 13, 2011. Such is the life. The choices we make are the variables that decide the kind person we are. Good and bad are the only two choices, there is no optimum in it. either you do good or you do bad. I sometimes wonder why do we have to think so much before doing something or deciding somethings in life? The answer to this lies in the following example:. Trembling in pain, Purshottam asks him WHY? I saved your life. why? The Croc Answered ."SUCH IS THE LIFE". The bir...

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