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होकर भी नहीं होना..: February 2011
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होकर भी नहीं होना. क्योंकि अक्सर यहाँ होते हुये भी मैं यहाँ नहीं होता।. Sunday, February 6, 2011. नोट्स…. 2- उस दिन जब वो पारदर्शी काँच के उस पार थी, मैं उसे देख सकता था… उसे महसूस कर सकता था… उसके होठों को पढ सकता था… लेकिन हाथ बढाकर भी उसे छू नहीं सकता था…. कंप्लीटली इनकंप्लीट…. मेरे कुछ नोट्स ‘निर्मल‘. के लिये…. तस्वीर मानव के ब्लॉग. Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय). Links to this post. Labels: कुछ एं वें ही. निर्मल वर्मा. Subscribe to: Posts (Atom). इधर भी हैं अपन. अज़दकी अलमारी. वे दिन. एक आलसी ...
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|| आकाश के उस पार ||: लकीरें
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आकाश के उस पार. लकीरें. उस सुबह जब आँख खोलीं , थीं लकीरें. किसने आखिरकार खींची ये लकीरें ,. कल तलक हम साथ हँसते , साथ रहते. आज दोनों को अलग करतीं लकीरें. साथ थे , पर आज से दोनों अलग हैं ,. अब नहीं वो शाम की महफ़िल सजेंगीं ,. उस राह पर तो आज भी निकलेगा तू , पर. अब नहीं वो राह मेरे घर रुकेंगीं ,. चौपाल पर बैठूंगा जाके रोज , लेकिन. अब नहीं साझे की वो चिलमें जलेंगीं,. प्यार अपना आज कम लगने लगा है ,. प्यार से शायद बड़ी हैं ये लकीरें. इस साल भी रमजान होगा घर हमारे ,. Posted by Akash Mishra. ये कलम हì...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Jun 20, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 जून 2014. दिन में फैली ख़ामोशी :). चित्र - ( गूगल से साभार ). जब कोई इस दुनिया से. चला जाता है. वह दिन उस इलाके के लिए. बहुत अजीब हो जाता है. चारों दिशओं में जैसे. एक ख़ामोशी सी छा जाती है. दिन में फैली ख़ामोशी. वहां के लोगो को सुन्न कर देती है. क्योंकि कोई शक्श. इस दुनिया से. रुखसत हो चुका होता है! C) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. संजय भास्कर. नई पोस्ट. आसमान...
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शब्दों की मुस्कुराहट : May 3, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). वक्त के साथ चलने की कोशिश - वन्दना अवस्थी दुबे :). ब्लॉगजगत में वन्दना अवस्थी दुबे. एक जाना पहचाना नाम है (अपनी बात - वक्त के साथ चलने की लगातार कोशिश है वंदना जी की ) से प्रभावित है! की कुछ पंक्तिया साँझा कर रह हूँ! मुट्ठी भर दिन. चुटकी भर रातें,. गगन सी चिंताएँ,. किसको बताएं? जागती सी रातें,. दिन हुए उनींदे,. समय का विलोम. कैसे सुलझाएं? नई पोस्ट. भास्कर ...शब्...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Nov 20, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 20 नवंबर 2014. दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप - आशालता सक्सेना :). इसी के साथ बहुत सी यादें भी जुडी हुई है! आशा जी कि कलम से :-. कुछ तो ऐसा है तुम में. य़ुम्हारी हर बात निराली है. कोई भावना जाग्रत होती है. एक कविता बन जाती है! लिखते लिखते कलम नहीं थकती. हर रचना कुछ कहती है. हर किताब को सहेज कर रखूँगा! कवयित्री (. आशा सक्सेना. C ) संजय भास्कर. भास्...शब्...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Aug 25, 2014
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 25 अगस्त 2014. वो जब लिखती हैं कागज पर अपना दिल निकाल कर रख देती है - अनुलता राज नायर :). वो जब लिखती है तो बस कागज़ पर अपना अपना दिल निकाल कर रख देती है ऐसी ही है लेखिका अनुलता राज नायर. कुछ लाइन पेश है :). एक शोख़ नज़्म. फिसल कर मेरी कलम से. बिखर गयी. धूसर आकाश में! भीग गया हर लफ्ज़. बादलों के हल्के स्पर्श से. और वो बन गयी. एक सीली उदास नज़्म! तभी मैंन&...पुरा...
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शब्दों की मुस्कुराहट : Feb 6, 2015
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शब्दों की मुस्कुराहट. जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजता हूँ वही लिखता हूँ शब्दों के सहारे मुस्कुराने की कोशिश :). 06 फ़रवरी 2015. मेरी नजर से चला बिहारी ब्लॉगर बनने - संजय भास्कर. सलिल वर्मा. जी नाम तो आप सभी जानते ही हो अरे भईया वही चला बिहारी ब्लॉगर बनने. पर लिखे या एकलव्य. दर्द कुछ देर ही रहता है बहुत देर नहीं. जिस तरह शाख से तोड़े हुए इक पत्ते का रंग. माँद पड़ जाता है कुछ रोज़ अलग शाख़ से रहकर. ख़त्म हो जाएगी जब इसकी रसद. C ) संजय भास्कर. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. भास्क...भास...
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सम्वेदना के स्वर: August 2011
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सम्वेदना के स्वर. भाव, रस और ताल से बने भारत की सम्वेदनाओं की अभिव्यक्ति. सम्वेदना के स्वर. यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,. जिसमें भाव. का प्रतीक आम आदमी का भा. बसता है. सम्वेदनाएँ. Wednesday, August 31, 2011. अन्ना हजारे और पीसी बाबू! इस पूरे आंदोलन के बीच बार-बार. किसी न किसी बात पर पीसी. बाबू बहुत याद आये। पीसी बाबू यानी पायाती चरक जी. इतनी जल्दी भूल गए आप! अखबार की. बिसात से व्याकुल. मन में. पी सी बाबू का कथन. गूंजता रहा! चैतन्य आलोक :. है क्या. 8221; को. इसके बì...
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|| आकाश के उस पार ||: बचपन
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आकाश के उस पार. शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे अपना बचपन वापस नहीं चाहिए -. अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,. तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता. वो फिर से मैं करता कोई मीठी गलती ,. वो कोई मुझे ; प्यार से फिर बताता. वो जिद फिर से करता खिलौनों की खातिर ,. वो फिर से मचलता ; झूलों की खातिर. वो ललचायी नजरें दुकानों पे रखता ,. वो आँखों से टॉफी के हर स्वाद चखता. वो बचपन के साथी फिर से मैं पाता ,. वो तुतली जुबाँ में साथ उनके मैं गाता. वो गर पाक हो पाते इक बार ये मन. Posted by Akash Mishra. 13 October 2012 at 16:35.
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|| आकाश के उस पार ||: प्रियतम का प्यार - हास्य कविता ?
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आकाश के उस पार. प्रियतम का प्यार - हास्य कविता? सारी रात प्रियतम हमरे ,. दिल लगाकर पीटे हमको ,. फर्श पोंछने का दिल होगा ,. चोटी पकड़ घसीटे हमको ,. गला दबाया प्यार से इतने ,. अँखियाँ जइसे लटक गयीं हो ,. गाली इतनी मीठी बांचे ,. शक्कर सुनकर झटक गयी हो ,. पिस्तौल दिखा रिकवेस्ट किये ,. हम और किसी को न बतलायें ,. हम ; मन में ये फरियाद किये ,. ये प्यार वो फिर से न दिखलायें. वो तो अपनी सारी चाहत ,. सिर्फ हमीं पर बरसाते थे ,. चाय से ले कर खाने तक की ,. रोज रात को शयन कक्ष में ,. हम भी शक्ति-स...ये जì...
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