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विशाल__दिल की कलम से

विशाल दिल की कलम से. तुम लौटे हो,. बरसों बाद,. लंबा सफ़र तय करके,. देखने फिर ,. मेरे पुराने रंग,. मेरे रंग. बिक गए सारे,. ज़िन्दगी के उधार. चुकाते चुकाते,. बस बची है,. स्याही और सफेदी,. स्याही भी कम है अब. सफेदी कुछ ज़्यादा है,. तुम ज़रा देर से पहुंचे,. मुझे मुआफ़ करना,. लौटा रहा हूँ मैं. तुम्हे बेरंग,. बैरंग।. प्रस्तुतकर्ता. 16 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 15 जनवरी 2013. एक पुल है,. यह पुल,. 29 ट&#...

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विशाल दिल की कलम से. तुम लौटे हो,. बरसों बाद,. लंबा सफ़र तय करके,. देखने फिर ,. मेरे पुराने रंग,. मेरे रंग. बिक गए सारे,. ज़िन्दगी के उधार. चुकाते चुकाते,. बस बची है,. स्याही और सफेदी,. स्याही भी कम है अब. सफेदी कुछ ज़्यादा है,. तुम ज़रा देर से पहुंचे,. मुझे मुआफ़ करना,. लौटा रहा हूँ मैं. तुम्हे बेरंग,. बैरंग।. प्रस्तुतकर्ता. 16 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 15 जनवरी 2013. एक पुल है,. यह पुल,. 29 ट&#...
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1 बैरंग
2 अफ़सोस
3 विशाल
4 उस पार
5 इस पार
6 आज है
7 तू कमतर
8 तू थलचर
9 बचा न
10 नग्न
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बैरंग,अफ़सोस,विशाल,उस पार,इस पार,आज है,तू कमतर,तू थलचर,बचा न,नग्न,सुन्दर,मनमोहक,समर्थक,अंतर,gadget,follow this blog,आहुति,स्पर्श,झरोख़ा,शिवा,शस्वरं,अन कवि,विमर्श,नजरिया,आपबीती,सुज्ञ,रसबतिया,अमृतरस,कल्पतरु,निरत,आबशार,साधना*,मचान,हया ,विचार,वटवृक्ष,अनमोल
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विशाल__दिल की कलम से | dilkikalamse-sagebob.blogspot.com Reviews

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विशाल दिल की कलम से. तुम लौटे हो,. बरसों बाद,. लंबा सफ़र तय करके,. देखने फिर ,. मेरे पुराने रंग,. मेरे रंग. बिक गए सारे,. ज़िन्दगी के उधार. चुकाते चुकाते,. बस बची है,. स्याही और सफेदी,. स्याही भी कम है अब. सफेदी कुछ ज़्यादा है,. तुम ज़रा देर से पहुंचे,. मुझे मुआफ़ करना,. लौटा रहा हूँ मैं. तुम्हे बेरंग,. बैरंग।. प्रस्तुतकर्ता. 16 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 15 जनवरी 2013. एक पुल है,. यह पुल,. 29 ट&#...

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विशाल__दिल की कलम से: हाँ,मैं उनको पढ़ा करता हूँ

https://dilkikalamse-sagebob.blogspot.com/2011/05/blog-post.html

विशाल दिल की कलम से. हाँ,मैं उनको पढ़ा करता हूँ. उस आबशार पे,. उस रस की धार पे,. बेखुद,बेसाख्ता. टूटे पत्ते सा बहा करता हूँ,. हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ. छूटी हैं मंजिलें,. भूले हैं रास्ते,. उस मोड़ पर खडा हुआ,. आसमान तका करता हूँ,. हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ. वो जो चढाते हैं ,. लफ्जों को मुलम्मा,. उन आईनों को देख,. बेमोल बिका करता हूँ,. हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ. मंदिर की घंटियाँ,. बचपन के कहकहे,. अनंत की आवाज़,. हाँ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ. रखी हैं संजो कर,. उनकी कलम को तू,. 01 मई, 2011 20:55.

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विशाल__दिल की कलम से: अंतर

https://dilkikalamse-sagebob.blogspot.com/2012/01/blog-post.html

विशाल दिल की कलम से. 05 जनवरी 2012. क्यों बुनती रहती हो तुम. शब्दों के मकड़ जाल. उलझा कर कागज़ के टुकड़ों पर. फिर कहती हो. हल करो पहेलियाँ. देखो कितने रंग भर के बनाई है. कितने गूढ़ रहस्य छिपे हैं. इन तस्वीरों में. ज़िन्दगी पहले ही. कम उलझी हुई नहीं है क्या. खुलते ही नहीं ज़िन्दगी. के रहस्य. पार कर लूं एक दरवाज़ा. तो फिर से सामने आ जाता. दूसरा बंद कमरा. और तुम्हारा यह कहना. भी लगता है गैर वाजिब. तुम तो निरे बुद्धू हो. नहीं समझ पाते तुम. शब्दों की जटिलता. दिल करता है मेरा. 05 जनवरी, 2012 09:38. संग&#...

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विशाल__दिल की कलम से: भाव और शब्द

https://dilkikalamse-sagebob.blogspot.com/2012/01/blog-post_27.html

विशाल दिल की कलम से. 27 जनवरी 2012. भाव और शब्द. भाव के गर्भ से. जन्म लेते शब्द. ज़ेर से अटे. करते हैं रुदन. पर होते हैं जीवंत. शब्दों से. भाव का निर्माण. मूर्तिकार की रचना. तराशी हुई. पर निष्प्राण. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 29 टिप्‍पणियां:. केवल राम :. 27 जनवरी, 2012 08:52. उत्तर दें. 28 जनवरी, 2012 07:30. उत्तर दें. कौशलेन्द्र. 27 जनवरी, 2012 09:38. उत्तर दें. कौशलेन्द्र. 27 जनवरी, 2012 09:52. एक कविता. धन्यव...

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विशाल__दिल की कलम से: एक ललित निबंध -श्री प्रेम पखरोलवी

https://dilkikalamse-sagebob.blogspot.com/2011/03/blog-post_27.html

विशाल दिल की कलम से. 27 मार्च 2011. एक ललित निबंध -श्री प्रेम पखरोलवी. राह वो बतला कि. मैं दिल में किसी के घर करूं. प्रेम पखरोलवी. पूर्व विधायक एवं पूर्व लोक संपर्क अधिकारी,हिमाचल प्रदेश,. ललित निबंध की चार पुस्तकें प्रकाशित,. विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित,. अध्यन ,समाज सेवा,संगीत,कविता एवं पर्यटन. तथा स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य). संस्कृत. सूक्ति. 8216;यस्मिन. जीवन्ति. काकोअपि. कुरुते. चंच्बा. अनेकों. उदरपूर्ति. स्वार्थी. संस्कारों. फराखदिली. परमार्थी. महात्मा. स्वार्थ. मैंने. काफी...सार...

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विशाल__दिल की कलम से: कुछ और जीना चाहता हूँ

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विशाल दिल की कलम से. 05 अप्रैल 2011. कुछ और जीना चाहता हूँ. कुछ भूल जाना चाहता हूँ,. इक ज़ख्म सीना चाहता हूँ,. इक जाम पीना चाहता हूँ ,. कुछ और जीना चाहता हूँ. मैं पास आना चाहता था ,. अब दूर जाना चाहता हूँ,. इक जाम पीना चाहता हूँ,. कुछ और जीना चाहता हूँ. कुछ होश खोना चाहता हूँ,. कुछ होश पाना चाहता हूँ,. इक जाम पीना चाहता हूँ ,. कुछ और जीना चाहता हूँ. कुछ गुनगुनाना चाहता हूँ,. नया गीत गाना चाहता हूँ,. इक जाम पीना चाहता हूँ ,. कुछ और जीना चाहता हूँ. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. लेबल: कविता. गुनग&#236...

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Dil Ki Guftagu | Jazbaad Sirf Dil Se

Jazbaad Sirf Dil Se. About/म र ब र म. Food/ख न क स व द. Zara Is Maa Ke Baarey Mein Bhi Toh Socho. मई 8, 2016. म हनत करत ह वह अपन ममत बनकर रखत ह. दर द म ट त ह वह अपन ज़ख म भरकर रखत ह. ल ख क श श हम कर हम नह बन सकत ह उनक ज स. र स त पर यह ह ज़र इनक भ क छ स च. हर लम ह ज ग ज़र इश र ढ ढत रहत ह. हर वह तकल फ क झ लकर आग बढ़त ह यह. र स त पर ह ज़र इनक भ क छ स च. कभ स ग नल पर द खत ह हम पत ह नह रहत. वह उनक बच च ह य पर य. पर फ तरत उनक द खत रह ज त ह हम. ज़र उनक भ क छ स च र स त पर ह ज. आज मथरस ड मन य ज रह ह. अवर ग क त. य न ख द...

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दिल की हंसी

दिल की हंसी. Tuesday, October 15, 2013. आज के मतलबी ज़माने में. बस ये बेज़ुबान ही वफादार हैं. अब और किसी की ज़रूरत नही. जब साथ मेरा सच्चा यार है. Monday, September 30, 2013. खुद अनिंयत्रित हो गये बाबा रामदेव. वाह जै हो बाबा रामदेव जी की. सब को शांति का पाठ पढ़ाने वाले. और गुस्से को काबू में रखने के तरीके सिखाने वाले. खुद पर 8 घंटे नियंत्रण नही रख सके लंदन में. जै हो. Friday, May 31, 2013. कुकड़ूँ कूँ. कहाँ छुप गये तुम कठोर. अब तुम्हारी आवाज़ ही नही आती. कुकड़ू कूँ. Friday, April 19, 2013. जाप&#2366...

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दिल की कलम से...

दिल की कलम से. बड़ा बेदम निकलता है. Author: दिलीप /. हँसी होंठों पे रख, हर रोज़ कोई ग़म निगलता है. मगर जब लफ्ज़ निकले तो ज़रा सा नम निकलता है. वो मुफ़लिस खोलता है रोटियों की चाह मे डिब्बे. बहुत मायूस होता है वहाँ जब बम निकलता है. वो अक्सर तोलता है ख्वाब और सिक्के तराजू में. खुशी पाने में इक सिक्का हमेशा कम निकलता है. जबां की जेब में शीशी जहर की कब तलक होगी. तेरा हर लफ्ज़ घुलने से हवा का दम निकलता है. लहू अब पेड़ की हर शाख से हरदम निकलता है. 21 टिप्पणियाँ. Author: दिलीप /. Author: दिलीप /. दूर थ&#23...

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विशाल__दिल की कलम से

विशाल दिल की कलम से. तुम लौटे हो,. बरसों बाद,. लंबा सफ़र तय करके,. देखने फिर ,. मेरे पुराने रंग,. मेरे रंग. बिक गए सारे,. ज़िन्दगी के उधार. चुकाते चुकाते,. बस बची है,. स्याही और सफेदी,. स्याही भी कम है अब. सफेदी कुछ ज़्यादा है,. तुम ज़रा देर से पहुंचे,. मुझे मुआफ़ करना,. लौटा रहा हूँ मैं. तुम्हे बेरंग,. बैरंग।. प्रस्तुतकर्ता. 16 टिप्‍पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. 15 जनवरी 2013. एक पुल है,. यह पुल,. 29 ट&#...

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