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.: May 2008
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शुक्रवार, 16 मई 2008. तुझे कैसे मै सजांऊ. तेरे माथे पे जो चमक सके. वो बिंदिया कहां से लाऊं. तेरे नयनों में जो दमक सके. वो कजरा कहां से लाऊं. तेरी ज़ुलफ़ों को जो बांध सके. वो गजरा कहां से लाऊं. ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं. तेरे होंठों पे जो निखर सके. वो लाली कहां से लाऊं. तेरे गालों पे जो बिखर सके. वो सुरखी कहां से लाऊं. तेरे हाथों में जो खनक सके. वो कंगन कहां से लाऊं. तेरे पैरों में झनक सके. वो पायल कहां से लाऊं. ए मेरे मनमीत तुझे कैसे मै सजाऊं. तेरे तन पे जो महक सके. मंगलवार, 13 मई 2008. मेर...
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.: April 2013
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रविवार, 14 अप्रैल 2013. मंच-फिक्सिंग. एक बार किया गया नगर में कवि-सम्मेलन का आयोजन. उच्च कोटि की कविताएं सुनने का था प्रायोजन।. आमंत्रित कविगण की सूची सबसे ऊपर हमारा नाम था,. हो भी क्यों ना आजकल कविता लिखना ही हमारा काम था।. जैसे ही आयोजक ने सम्मेलन में पधारने की बात की,. वैसे ही हमने उनपर बिन बादल बरसात की।. कहा नहीं लेते हैं हम कोई भी "रिस्क",. इसलिए कर लेते हैं पहले पारिश्रमिक "फिक्स"।. मेरी बातें सुनकर आयोजक का सिर चकराया,. हेमन्त रिछारिया. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ.
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.: March 2015
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बुधवार, 18 मार्च 2015. बुद्धत्व. जीवन की आपाधापी में,. अक्सर जब मन घबराता है।. उस पार से कोई बुलाता है,. तन चलने को अकुलाता है।. मगर “यशोधरा” का पल्लू ,. पैरों से लिपट जाता है।. 8220;सिद्धार्थ” रूपी ये मन मेरा,. 8220;बुद्ध” होते-होते रह जाता है॥. हेमन्त रिछारिया. प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. बुद्धत्व. यह भी देखें. प्रारब्ध. तिश्नगी. Provided by chicago internet marketing company.
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.: February 2009
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शनिवार, 28 फ़रवरी 2009. खुशी कभी हमारा दरवाज़ा भी खटखटा. यूं गैरों की तरह नज़रें चुराकर तो न जा. तन्हा-तन्हा दिन कटता,रातें कटी बेज़ार,. थक गए करते-करते अब तेरा इंतजार. कभी अपने आगोश में लेकर,मीठी नींद सुला. खुशी अब आ भी जा. अपने लिए सब एक से हैं,क्या होली-दीवाली,. जेबों की तरह है अपनी किस्मत खाली-खाली. कच्चे घर की चौखट पे भी अरमानो के दीप जला. खुशी अब आ भी जा. तोरण द्वार सजे महके घर का अँगना,. बेटी डोली में बैठे पूरा हो यह सपना. खुशी अब आ भी जा. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. ए खुदा! मातम में...दैरो...
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.: September 2008
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मंगलवार, 30 सितंबर 2008. उसका सामराज्य. नीर भी उसी का, छीर भी उसी का. धीर भी उसी का, वीर भी उसी का. भोग भी उसी का, योग भी उसी का. संयोग भी उसी का, वियोग भी उसी का. तन भी उसी का, मन भी उसी का. जन भी उसी का, धन भी उसी का. सुख भी उसी का, दु:ख भी उसी का. शुभ भी उसी का, अशुभ भी उसी का. भय भी उसी का, अभय भी उसी का. क्षय भी उसी का, अक्षय भी उसी का. परीत भी उसी की, मीत भी उसी का. गीत भी उसी का, संगीत भी उसी का. जनम भी उसी का, मरण भी उसी का. वरण भी उसी का, हरण भी उसी का. प्रस्तुतकर्ता. इश्क कि बा...पेश...
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.: February 2013
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सोमवार, 18 फ़रवरी 2013. अपने-अपने खुदा. गुलमोहर की छांव तले नींद के आगोश में था. तभी "जयऽऽऽ शनि महराज" के उद्दघोष से नींद टूटी. देखा तो एक व्यक्ति तेल से अधभरे पात्र में. लौह प्रतिमा रखे खड़ा है।. तेल में कुछ सिक्के डूबे हुए थे. उसका मंतव्य समझ. उसे एक सिक्का देकर विदा करता हूं।. पुनः आंखे बन्द करता हूं,. तभी "याऽऽऽऽ मौला करम" की आवाज़ चौंकाती है. देखता हूं एक फकीर मुट्ठी भर अंगारों पर. लोबान डाल मेरी बरकत की दुआएं मांग रहा है,. फिर से आखें बन्द करता हूं. किसी के लिए रहमान,. द्वार खुलत...लिफा...
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.: August 2013
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गुरुवार, 22 अगस्त 2013. पानी सर ऊपर है. कछु करो अब नाथ,. पानी सर ऊपर है।. छूटे हाथ से हाथ,. पानी सर ऊपर है॥. डूबी गाड़ी डूबी गैल,. डूबा हमरा कबरा बैल।. कछु ना आयो हाथ,. पानी सर ऊपर है॥. बह गए सारे ढ़ोना-टापर,. तितर-बितर भई है बाखर।. भए बच्छा-बच्छी अनाथ,. पानी सर ऊपर है॥. घनन-घनन-घन गरजे बदरा,. उमड़-घुमड़ के बरसे बदरा।. बिजुरिया चमके साथ,. पानी सर ऊपर है॥. हेमन्त रिछारिया. प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. गुरुवार, 15 अगस्त 2013. यार, हम कहां आ गए. बीते ६६ साल यार,. हम कहां आ गए।. नई पोस्ट.
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.: September 2013
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बुधवार, 25 सितंबर 2013. क्योंकि मैं विशिष्ट हूं. मैं नहीं लग सकता राशन की कतारों में,. ना ही पाओगे मुझे तुम टिकिट-खिड़की के आगे. रेल्वे-स्टेशनों या थिएटरों में,. मिलूंगा नहीं मैं तुम्हें किसी बाज़ार में,. क्योंकि मैं विशिष्ट हूं।. मैं सफ़र नहीं करता बसों में जनरल बोगियों में,. घूमता नहीं पैदल बेफ़िक्र किसी नदी के किनारे,. ठठ्ठा मारकर हंसना नहीं तहज़ीब मेरी,. बुक्का फाड़कर रोते देखा है मुझे कभी? अकेला तुम मुझे कभी ना पाओगे,. हे विधाता! तू मुझे अगला जन्म मत देना,. एक आम आदमी की तरह.।. नई पोस्ट.
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.: मुख्यमंत्रीजी के साथ
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रविवार, 17 फ़रवरी 2013. मुख्यमंत्रीजी के साथ. डा. धर्मेंद्र सरल (सरलजी के पुत्र) व सीएम के साथ-. प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. अपने-अपने खुदा. मुख्यमंत्रीजी के साथ. किसको डालूं वोट. यह भी देखें. प्रारब्ध. तिश्नगी. Provided by chicago internet marketing company. पाठक संख्या. सरल टेम्पलेट. Blogger. द्वारा संचालित.