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सुबीर संवाद सेवा: December 2012
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गुरुवार, 20 दिसंबर 2012. श्री नीरज गोस्वामी जी को सुकवि रमेश हठीला शिवना सम्मान प्रदान किये जाने के समारोह तथा मुशायरे के वीडियो ।. सबसे पहले तो ये कि उस कार्यक्रम के पूरे फोटो अब वेब अल्बम पर उपलब्ध हैं । जिनको आप यहां https:/ picasaweb.google.com/117630823772225652986/NEERAJGOSWAMIJISAMMANANDMUSHAIRA. द्वारा: पंकज सुबीर. 10 टिप्पणियां. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. शनिवार, 8 दिसंबर 2012. भोजन सप्लाई व...इस्म...ये ...
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वातायन: November 2012
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. शुक्रवार, 2 नवंबर 2012. वातायन-नवंबर,२०१२. हम और हमारा समय. विकास के रथ में भ्रष्टाचार का पहिया. रूपसिंह चन्देल. सभी एक-मत हैं– एक जुट हैं. ऎसा पहली बार हो रहा है और इसलिए पहली बार. हो रहा है क्योंकि किसी व्यक्ति ने. एक साथ सभी को बेनकाब कर आम जनता को उनके असली चेहरे दिखाए हैं. 2404; अपने एक इंटरव्यू में. डेड लाइन. प्रेम प्रकाश. पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव. एसपी. आनन्द. गन में गेंद से खेलनेवाला. और जो भी सब्ज़ी बनती. हो सकता है. ताया की प&#...पहोवì...
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वातायन: December 2013
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साहित्य, समाज और संस्कृति का झरोखा. मुखपृष्ठ. मंगलवार, 3 दिसंबर 2013. वातायन-दिसम्बर,२०१३. हम और हमारा समय. लड़कियां और सामन्ती सोच. रूपसिंह चन्देल. से जुड़े वे तथ्य. थे जिन्हें तलवार दम्पति ने छुपाए या पुलिस को उनके संबन्ध में भटकाने का प्रयास किए. विद्वान जज ने दोनों को उम्रकैद. की सजा के छब्बीस आधार. कारणों से जो त्यधिक व्यस्त रहते थे…सूत्रों के. प्राण शर्मा की तीन लघु कथाएँ. अहिंसावादी. लिए उसके आगे कर देना चाहिए।. बिच्छु है। मार गिराइये। `. मुझ अहिंसावादी को क...बिच्छु अकस्म...मारता ह&#...सोन...
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रेत घड़ी: October 2009
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रेत घड़ी. Saturday, October 24, 2009. ढलान से उतरते हुए. एक संक्षिप्त सी कविता. तुम्हारी हथेलियों की गंध. जो मेरी रूह में समाई थी. अब भी फैली होगी हवा में कहीं. बाहों का पसीना. महकता होगा सरसों के खेत सा. आवाज़ के कुछ टुकड़े. बिखरे होंगे सूखे पत्तों में,. जाने क्यों सोचती हूँ ऐसा. और क्यों बची रहती है उम्मीदें. बाद मुद्दत के, कहीं न कहीं. मैं जब भी उतरती हूँ. सुंदर, ऊँचे पेड़ों से भरी वादी की ढ़लान. अपने कांधों पर पाती हूँ. एक बेजान अहसास,. Subscribe to: Posts (Atom). भारत दर्शन. View my complete profile.
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शस्वरं: August 2013
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ब्लॉग मित्र मंडली. न शान-ए-हिंद में गद्दारों की गुस्ताख़ियां होतीं. नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे. चमन के सरपरस्तों से न गर नादानियां होतीं. न फिर ये ख़ार की नस्लें हमारे दरमियां होतीं. मुख़ालिफ़ हैं ये सच-इंसाफ़ के. उलझे सियासत में. ख़ुदारा. पासबानों में न ऐसी ख़ामियां होतीं. असम छत्तीसगढ़ जम्मू न मीज़ोरम सुलगते फिर. न ही कश्मीर में ख़ूंकर्द केशर-क्यारियां होतीं. निभाती फ़र्ज़ हर शै मुल्क की गर मुस्तइद हो. धमाके भी नहीं होते. न गोलीबारियां होतीं. उनका खौल उठता ख़ूं. वतन के वास्ते. नई पोस्ट. न शान-ए-ह...
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सुबीर संवाद सेवा: October 2014
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गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014. दीपावली से जुड़े हुए महापर्व छठ पर्व पे सूर्य को प्रात: का अर्घ्य देकर सुनते हैं दो रचनाएं। एक हजल और एक सजल ।. अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं. राकेश खंडेलवाल जी. गज़ल के शेर ये तब होंठ आ सजाते हैं. 8216;तिलक’ लगाये जो ‘नीरजजी’ मुस्कुराते हैं. गज़ब की सोच लिये लोकगीत की धुन पर. कई हैं झोंके जो ‘सौरभ’ से गुनगुनाते हैं. है ‘शार्दुला’ की छुअन जो नई खदानों से. तराशे खुद को कई हीरे निकले आते हैं. और ये शे'र पूरी सुबीर संवाद से...मन्सूर अली हाशमी. न खाते ख़ु...उन्हí...
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सुबीर संवाद सेवा: October 2012
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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012. दिल्ली में महुआ घटवारिन का विमोचन और अब वापस दीपावली के तरही मुशायरे की तैयारी ।. नई दिल्ली में महुआ घटवारिन का विमोचन). तिलकराज कपूर जी ने एक प्रश्न किया था : एक प्रश्न निरंतर परेशान कर रहा है कि एक अच्छे शेर के मूल तत्व क्या होते हैं।. तुझको सारे मन से चाहा, चाहा सारे तन से. अपने पूरेपन से चाहा, और अधूरे पन से. सर उठाओ ज़रा इधर देखो, इक नज़र, आखिरी नज़र देखो. द्वारा: पंकज सुबीर. 31 टिप्पणियां. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. लगभग दो माह...है&...
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सुबीर संवाद सेवा: November 2014
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सोमवार, 3 नवंबर 2014. अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं. भभ्भड़ कवि ' भौंचक्के'. तुम्हारी आँख से जो अश्क टूट जाते हैं. कमाल करते हैं., वो फिर भी झिलमिलाते हैं. कहा गया था भुला देंगे दो ही दिन में, पर. सुना गया है के हम अब भी याद आते हैं. अज़ल से आज तलक कर लीं इश्क़ की बातें. चलो के अब तो बिछड़ ही., बिछड़ ही जाते हैं. उफ़क से काट के लाये हैं आसमाँ थोड़ा. बिछा के आओ कहीं ख़ूब इश्क़ियाते हैं. हुनर से पार नहीं होती आशिक़ी की नदी. न सर पे छत है, न कपड़ा, न पेट में रोटी. जो सुनने आये है...अँधेरा एक...और उस पे ...
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सुबीर संवाद सेवा: November 2013
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गुरुवार, 7 नवंबर 2013. दीपावली का त्योहार भी बीत गया और अब आगे कुछ नया करने के लिये समय खड़ा है । आज केवल लंदन के ये वीडियो आप सब के लिये ।. द्वारा: पंकज सुबीर. 9 टिप्पणियां. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. रविवार, 3 नवंबर 2013. दीपावली की बहुत बहुत मंगल कामनाएं ।. अभिनव शुक्ला. अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो. ये है सच आज अंधेरों का बोल बाला है,. तुम दिया एक जलाकर कहो दिवाली है,. फिर से मुस्कान सि...स्वर्ण मृ...अपने ह...